May
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आप संसारके लिये रोओ तो भी संसार राजी नहीं होगा, पर
भगवान्के लिये व्याकुल हो जाओ तो भगवान् व्याकुल हो जायँगे ! जितना सत्संग करोगे,
विचार करोगे, उतना फायदा जरूर होगा‒इसमें सन्देह नहीं है;
परन्तु परमात्माकी प्राप्ति जल्दी नहीं होगी ! कई जन्म लग जायँगे,
तब होगी ! केवल परमात्मप्राप्तिकी
जोरदार इच्छा हो जाय तो भगवान्को आना ही पड़ेगा.....आना ही पड़ेगा ! किसीकी ताकत नहीं
कि भगवान्को रोक दे ! भगवान् कहते हैं कि जो जैसा मेरा भजन करते हैं,
मैं भी उनका वैसा ही भजन करता हूँ‒‘ये
यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ (गीता
४ । ११) । जो मेरे बिना
रो पड़ता है, उसके बिना मैं भी रो पड़ता हूँ !
संसारकी प्राप्तिमें तो क्रिया और पदार्थ मुख्य हैं,
पर भगवान्की प्राप्तिमें भगवान्का आश्रय और चुप रहना (कुछ
न करना) मुख्य हैं । भगवान्का आश्रय लेकर,
उनके चरणोंमें पड़कर कुछ भी चिन्तन न करे । अगर नींद अथवा आलस्य
आये तो चुप साधन न करें, प्रत्युत कीर्तन करें,
भगवान्का नाम लें ।
भगवान्के चरणोंका आश्रय लेकर उसीमें तल्लीन हो जायँ । कुछ भी
चिन्तन न करें‒‘आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्’ (गीता
६ । २५) । यह परमात्माकी
प्राप्तिका बहुत सुगम तथा बढ़िया साधन है । नित्य-निरन्तर भगवान्के चरणोंमें बने रहें
। जो तत्परतासे साधन करता है, जिसकी
परमात्मप्राप्तिकी नीयत है, उसके सब पाप चुप, स्थगित
हो जाते हैं; जैसे‒कोई कर्जदार आदमी किसी बड़े सेठ, राजा-महाराजाके
शरण हो जाय तो सब लेनदार चुप हो जाते हैं कि अब यह सब चुका देगा । भगवान्ने कहा है‒
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं
शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
(गीता १८ । ६६)
‘सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण
पापोंसे मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर ।’
‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’
कहकर भगवान्के चरणोंकी शरण हो जायँ तो सब पाप स्थगित हो जायँगे
। ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ करो और कुछ भी चिन्तन मत करो । संसारका चिन्तन हो जाय तो भगवान्का
चिन्तन करो, नहीं तो कुछ भी चिन्तन मत करो । भगवान्का चिन्तन करनेसे भगवान्से
दूर होते हैं । चिन्तन न करें तो परमात्मामें ही स्थिति होती है ।
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