Jan
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जब पार्वतीजीने सूखे पत्ते भी खाने छोड़ दिये तब उसका नाम ‘अपर्णा’ हो गया । किसी तरहसे मेरे नाममें ‘र’ आ जाय ।
पार्वतीकी ऐसी प्रीति देखकर भगवान् शंकर इतने प्रसन्न हुए कि इन्हें दूर रखना ही
नहीं चाहते हैं—ऐसा
विचार करके उन्हें अपने अंगमें ही मिला लिया—‘विष्नु पदी गंगा तोहु धूर्जटी धारी न सीस पर’—पृथ्वीपर लानेके लिये भागीरथने गंगाजीकी तपस्या की, उसके
कारण गंगाजीका ‘भागीरथी’ नाम पड़ गया । भगवान् शंकरने
गंगाजी (भागीरथी) को अपनी जटामें रमा लिया—‘जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्नि-लिम्पनिर्झरीविलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि’ —जैसे कड़ाहमें पानी डालें तो वह उसीमें ही घूमता रहता है,
ऐसे ही भगवान् शंकरकी जटामें गंगा घूमने लगीं । उनके मनमें था कि मेरे वेगको कौन
रोक सकता है ! मैं उसे ले जाऊँ पातालमें । भगवान् शंकरने उन्हें अपनी जटामें ही रख
लिया । जटामें वे घूमती रहीं । भागीरथकी पीढियाँ गुजर गयीं । उसने भगवान् शंकरसे
प्रार्थना की, तब उन्होंने थोड़ी-सी जटा खोली, उसमेंसे तीन धाराएँ निकलीं । एक
स्वर्गमें गयी, एक पातालमें गयी और एक पृथ्वी लोकमें आयी, इस कारण इसका नाम ‘त्रिपथगामिनी’ पड़ा ।
‘राम’ नाममें भगवान् शंकरका विशेष
प्रेम है । नामके प्रभावसे ही पार्वतीको उन्होंने अपना भूषण बना लिया ।
नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु
दीन्ह अमी को ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा १९/८)
वे नामके प्रभावको ठीकसे जानते हैं । समुद्रका मंथन किया गया, उसमेंसे सबसे
पहले जहर निकला तो सब देवता-असुर घबरा गये । उन्होंने भगवान् शंकरको याद किया और कहा—‘भोले
बाबा ! दुनिया मर रही है, बचाओ !’ उन्होंने ‘राम’ नामके सम्पुटमें उस हलाहल जहरको
कंठमें रख लिया । ‘रा’ लिखकर बीचमें जहर रख लिया और ऊपर ‘म’ लिख दिया तो अमृतका
काम कर दिया उस जहरने । जो स्पर्श करनेसे भी मार दे ऐसा हलाहल जहर । उससे भगवान्
शंकर नीलकंठ हो गये । जहर तो अपना काम करे ही । बस, कंठमें ही उसको रोक
लिया । जहर बाहर आ जाय तो मुँह कड़वा कर दे और भीतर चला जाय तो मार दे । ऐसे ‘राम’ नामने शिवजीको अमर बना दिया ।
अब आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं—
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू । लोक लाहु
परलोक निबाहू ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २०/२)
सुमिरन करनेमें ‘राम’ नाम कठीन नहीं है । ‘रा’ और
‘म’—ये दोनों अक्षर उच्चारण करनेमें सुगम हैं; क्योंकि ये
अक्षर अल्पप्राण हैं । जिनमें प्राण कम खर्च होते हैं,
वे अल्पप्राण कहे जाते हैं । ‘र’ का उच्चारण जितना सुगमतासे कर सकते हैं, उतना ‘ह’ का नहीं कर सकते; क्योंकि ‘ह’
महाप्राण है । जैसे ख, फ, छ, ठ, थ—प्रत्येक वर्गका दूसरा और चौथा अक्षर महाप्राण है । ‘क’ बहुत समयतक कह सकते हैं, पर ‘ख’
इतने समयतक नहीं कह सकते । बहुत जल्दी खतम हो जायेंगे प्राण; क्योंकि महाप्राण है
वह । पाँचवाँ अक्षर (‘ञ, म, ङ, ण, न’)—अल्प प्राण हैं और ‘यणश्चाल्पप्राणाः’ य, र, ल, व भी अल्पप्राण है । अल्पप्राणवाला अक्षर उच्चारण करनेमें सुगम होता है और उसका उच्चारण भी ज्यादा देर हो सकता है ।
महाप्राणवाले अक्षरामें बहुत जल्दी प्राण खतम हो जाते हैं । अतः अल्पप्राणवाले
अक्षरोंके समान दूसरे नाम उतनी देरतक नहीं ले सकते । इस कारण ‘राम’ नाम अल्पप्राण
होनेसे उच्चारण करनेमें सुगम है ।
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