Sep
03
।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी, वि.सं. २०७६ मंगलवार
                        ऋषिपंचमी
          सब साधनोंका सार

   
बाल, युवा और वृद्ध‒ये तीन अवस्थाएँ स्थूलशरीरकी हैं और देहान्तरकी प्राप्ति सूक्ष्म तथा कारणशरीरकी है । देहान्तरकी प्राप्ति (मृत्यु) होनेपर स्थूलशरीर तो छूट जाता है, पर सूक्ष्म तथा कारणशरीर नहीं छूटते । जबतक मुक्ति न हो, तबतक सूक्ष्म तथा कारणशरीरसे सम्बन्ध बना रहता है । तात्पर्य है कि हमारा वास्तविक स्वरूप स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण‒इन तीनों शरीरोंसे तथा इनकी अवस्थाओंसे अतीत है । शरीर और उसकी अवस्थाएँ बदलती हैं, पर स्वरूप वही-का-वही रहता है । जन्मना और मरना हमारा धर्म नहीं है, प्रत्युत शरीरका धर्म है । हमारी आयु अनादि और अनन्त है, जिसके अन्तर्गत अनेक शरीर उत्पन्न होते और मरते रहते हैं । हमारी स्वतन्त्रता और असंगता स्वतःसिद्ध है । असंग (निर्लिप्त) होनेके कारण ही हम अनेक शरीरोंमें जानेपर भी वही रहते हैं, पर शरीरके साथ संग मान लेनेके कारण हम अनेक शरीरोंको धारण करते रहते हैं । माना हुआ संग तो टिकता नहीं, पर हम नया-नया संग पकड़ते रहते हैं । अगर नया संग न पकडें तो मुक्ति स्वतःसिद्ध है ।

बालिके मरनेपर भगवान्‌ श्रीराम तारासे कहते हैं‒

तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया ॥
छिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित यह अधम सरीरा ॥
प्रगट सो तनु तव आगें सोवा । जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा ॥
उपजा ग्यान चरन तब लागी । लीन्हेसि परम भगति बार मागी ॥
(मानस, किष्किन्धाकाण्ड ११/२-३)

देश बदलता है, काल बदलता है, वस्तुएँ बदलती हैं, व्यक्ति बदलते हैं, अवस्थाएँ बदलती हैं, परिस्थितियाँ बदलती हैं, घटनाएँ बदलती हैं, पर हम नहीं बदलते । हम निरन्तर वही रहते हैं । जाग्रत्‌, स्वप्न और सुषुप्ति‒ये तीनों अवस्थाएँ बदलती हैं, पर तीनों अवस्थाओंमें हम एक ही रहते हैं, तभी हमें तीनों अवस्थाओंका और उनके परिवर्तन (आरम्भ और अन्त)-का ज्ञान होता है । स्थूल दृष्टिसे विचार करें तो जैसे हम हरिद्वारसे रायवाला आये और फिर रायवालासे ऋषिकेश आये । अगर हरिद्वारमें या रायवालामें अथवा ऋषिकेशमें ही रहनेवाले होते तो हरिद्वारसे ऋषिकेश कैसे आते ? अतः हम न तो हरिद्वारमें रहनेवाले हुए, न रायवालामें रहनेवाले हुए और न ऋषिकेशमें ही रहनेवाले हुए, प्रत्युत तीनोंसे अलग हुए । हरिद्वार, रायवाला और ऋषिकेश तो अलग-अलग हुए, पर हम उन तीनोंको जाननेवाले एक ही रहे । ऐसे ही हम सभी अवस्थाओंमें एक ही रहते हैं । इसलिये हमें बदलनेवालेको न देखकर रहनेवाले (स्वरूप)-को ही देखना चाहिये‒

रहता रूप सही कर राखो बहता संग न बहीजे ।


जैसे स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒ये तीनों शरीर अपने नहीं हैं, ऐसे ही स्थूलशरीरसे होनेवाली क्रिया, सूक्ष्मशरीरसे होनेवाला चिन्तन और कारणशरीरसे होनेवाली स्थिरता तथा समाधि भी अपनी नहीं है । कारण कि प्रत्येक क्रियाका आरम्भ और अन्त होता है । प्रत्येक चिन्तन आता और जाता है । स्थिरताके बाद चंचलता तथा समाधिके बाद व्युथान होता ही है । क्रिया, चिन्तन, स्थिरता, समाधि‒कोई भी अवस्था निरन्तर नहीं रहती । इन सबके आने-जानेका अनुभव तो हम  सबको होता है, पर अपने आने-जानेका, परिवर्तनका अनुभव कभी किसीको नहीं होता । हमारा होनापन निरन्तर रहता है ।