।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण अमावस्या, वि.सं.२०७७ सोमवार
सोमवती अमावस्या
गीतामें भक्ति और उसके अधिकारी


भगवन्नाम-जपसे भगवान्‌की बारम्बार स्मृति होती है । जैसे बिगुल बजनेसे सैनिक सजग हो जाता है, वैसे ही जपसे मनरूपी सैनिक सावधान होता है । इसी प्रकार सत्संग करनेसे, साधुओंके दर्शनसे भगवान्‌ याद आ जाते हैं, जिस प्रकार सिपाहीके देखनेसे राजा याद आ जाता है और जब भजन-चर्चा चलती है, तब ‘खूब गुजरेगी, मिल बैठेंगे दीवाने दो’ वाली कहावत चरितार्थ होती है । अर्थात् भगवान्‌का निरन्तर चिन्तन होने लगता है । भगवच्चर्चा चलती है तो मन उसमें रम जाता है । कण्ठ गद्‌गद हो जाता है, नेत्रोमें आँसू आने लगते हैं । गोस्वामीजी कहते हैं–

हिय फाटउ फूटहुँ नयन  जरउ सो तन केहि काम ।
द्रवै  स्त्रवै  पुलकै  नहीं   तुलसी   सुमिरत   राम ॥

भागवतमें भी कहा है–

             तदश्मसारं  हृदयं  वतेदं  यद्  गृह्यमाणैर्हरिनामधेयैः ।
न विक्रियेताथ यदा विकारो नेत्रे जलं गात्ररुहेषु हर्षः ॥
                                               (२/३/२४)

कबीरदासजी भी कहते हैं‒

सुमिरन सों सुधि लाइए, ज्यों सुरभी सूत माहिं ।
कह कबीर चारो  चरत  छिनहूँ  बिसरत  नाहिं ॥

ऐसा नित्य-निरन्तर चिन्तन करनेके लिए भगवान्‌ कहते हैं । यह बात हुई ।

दूसरी बात है‒ ‘मद्भक्तो भव’‒इसका तात्पर्य यह है कि मेरी आज्ञाका प्रेमपूर्वक पालन कर ।

अग्या सम न सुसाहिब सेवा ।

भगवान्‌की आज्ञापालन ही सेवा है । आदरपूर्वक भगवान्‌की एक आज्ञापालन करनेसे ही भगवान्‌ प्रसन्न हो जाते हैं ।

श्रीरामचन्द्रजी कहते हैं‒

सो सेवक प्रियतम मम सोई ।
मम अनुसासन मानइ जोई ॥


भगवान्‌की प्रसन्नता प्राप्त होनेपर फिर क्या बाकी रह सकता है । एक पिताके कई लड़के हैं । उनमें पिताको अत्यन्त प्यारा वह होगा, जो पिताकी आज्ञाका पालन करेगा । गुरुसे कह शिष्य विशेष लाभ उठायेगा, जो गुरु-आज्ञामें तत्पर होगा । आज्ञापालनसे पूज्यकी सारी शक्ति आज्ञा-पालकमें उतर आती है । इस विषयमें यह बात विशेष समझनेकी है कि श्रद्धेय पुरुष जिस क्षण किसी बताके लिये आज्ञा दें, उसी क्षण उसका पालन करना चाहिये । इससे विशेष लाभ होता है । असली आज्ञा वही है, जो मालिकके अनुकूल हो, हमारे लिये भले ही प्रतिकूल हो । इसी तरह भगवदाज्ञापालन करनेवाला ही भगवद्भक्त है ।