।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                         




           आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल पंचमी वि.सं.२०७७, सोमवा
गुरु कैसा हो ?


जिस गुरु, सन्त-महापुरुषमें ये बातें हों:‒

१.  जो हमारी दृष्टिमें वास्तविक बोधवान्, तत्त्वज्ञ दीखते हों और जिनके सिवाय और किसीमें वैसी अलौकिकता, विलक्षणता न दीखती हो ।

२.  जो कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि साधनोंको तत्त्वसे ठीक-ठीक जाननेवाले हों ।

३.  जिनके संगसे, वचनोंसे हमारे हृदयमें रहनेवाली शंकाएँ बिना पूछे ही स्वतः दूर हो जाती हों ।

४.  जिनके पासमें रहनेसे प्रसन्नता, शान्तिका अनुभव होता हो ।

५.  जो हमारे साथ केवल हमारे हितके लिये ही सम्बन्ध रखते हुए दीखते हों ।

६.  जो हमारेसे किसी भी वस्तुकी किंचिन्मात्र भी आशा न रखते हों ।

७.  जिनकी सम्पूर्ण चेष्टाएँ केवल साधकोंके हितके लिये ही होती हों ।

८.  जिनके पासमें रहनेसे लक्ष्यकी तरफ हमारी लगन स्वतः बढ़ती हो ।

९.  जिनके संग, दर्शन, भाषण, स्मरण आदिसे हमारे दुर्गुण-दुराचार दूर होकर स्वतः सद्गुण-सदाचाररूप दैवी सम्पत्ति आती हो ।

❈❈❈❈

प्रश्न‒गुरुकृपा क्या है और वह कैसे प्राप्त होती है ?

उत्तर‒गुरुके चित्तकी प्रसन्नता ही गुरुकृपा है और वह गुरुके अनुकूल बननेसे प्राप्त होती है । गुरुकृपासे लाभ जरूर होता है । गुरुकृपा कभी निष्फल नहीं होती; क्योंकि वास्तवमें गुरुरूपसे परमात्मा ही हैं । केवल परमात्मप्राप्तिके उद्देश्यसे ही गुरुकी सेवा, आज्ञापालन किया जाय तो वह वास्तवमें परमात्माकी ही सेवा है; अतः भगवान्‌की कृपासे उद्देश्यकी पूर्ति अवश्य होती है ।

प्रश्न‒गुरुकृपा और भगवत्कृपामें क्या अन्तर है ?

उत्तरदोनोंमें तत्त्वतः कोई अन्तर नहीं है । लौकिक दृष्टिसे वे दो दीखती हैं, पर वास्तवमें एक ही हैं ।

प्रश्न‒गुरुकी दीक्षा और शिक्षा क्या है ?

उत्तर‒जैसा गुरु बताये, वैसा नियम लेना, व्रत लेना ‘दीक्षा’ है और उन नियमोंका पालन करना, उनके अनुसार अपना जीवन बनाना ‘शिक्षा’ है । पहले दीक्षा देनेके बाद ही शिक्षा दी जाती थी तो वह शिक्षा फलीभूत होती थी, बढ़िया होती थी । परन्तु आज दीक्षाके बिना ही शिक्षा दी जाती है, जिससे शिक्षा बढ़िया नहीं होती ।

प्रश्न‒गुरुदक्षिणा क्या है ?

उत्तर‒अपने-आपको सर्वथा गुरुके समर्पित कर देना अर्थात् ‘मैं’ और ‘मेरा’ न रखना ही गुरुदक्षिणा है । गुरुदक्षिणा देनेके बाद शिष्यको अपनी चिन्ता नहीं होती, प्रत्युत उसकी चिन्ता गुरुको ही होती है ।

‒ ‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे

❈❈❈❈

हमारे वास्तविक गुरु हमारे भीतर है, वह है‒विवेक । यह विवेक भगवान्‌ने दिया है । भगवान्‌ने अपने कल्याणके लिये मनुष्यशरीर दे दिया, सब साधन-सामग्री दे दी तो क्या गुरुको बाकी छोड़ दिया !