सबसे पहले इस बातको जाननेकी आवश्यकता है कि विनाशी और
अविनाशी‒ये दो चीजें हैं । इसको जानना मनुष्यका खास काम है । भगवान्ने गीताके
आरम्भमें ही यह विषय चलाया । दूसरे अध्यायके ग्यारहवें श्लोकसे लेकर तीसवें
श्लोकतक भगवान्ने सत्-असत्, नित्य-अनित्य; देह-देही, शरीर-शरीरी‒इन दोनोंके
भेदको बताया । इन दोनोंका भेद ठीक समझमें आ जाय तो
कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि सब-के-सब साधन सुगम हो जाते हैं । इनका भेद समझे
बिना साधन कठिन हो जाता है । इनका भेद ठीक समझमें आ जाय तो हम परिवर्तनशीलसे ऊँचे
उठ जायँगे, इसमें सन्देहकी बात नहीं है । कारण कि वास्तवमें हम परिवर्तनशीलसे ऊँचे
हैं । हम जैसे हैं, वैसा अनुभव करनेमें क्या कठिनता है ? नित्य और अनित्य,
सत् और असत्, अविनाशी और विनाशी‒इनके भेदको ठीक तरहसे समझनेपर तत्त्वबोध हो जाता
है और जन्म-मरणके चक्करसे छुटकारा हो जाता है । प्रकृतिके
गुणोंका संग, आसक्ति, प्रियता, खिंचाव ही जन्म-मरणका खास कारण है‒‘कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु’ (गीता १३/२१) । बहुत-से भाई कहते
हैं कि क्या करें, मन नहीं लगता और मन लगे बिना कुछ नहीं होता । भजनमें मन नहीं
लगा तो भजन करनेसे क्या फायदा ? राम-राम कहते हो, पर मन लगे बिना कुछ नहीं‒ऐसा
निर्णय दूसरे लोग भी दे देते हैं । झट
दूसरोंको निर्णय दे देना, सम्मति दे देना बुद्धिकी अजीर्णता है । उनसे पूछो
कि आपने ऐसा करके देखा है क्या ? इलाज करनके लिये अच्छे-अच्छे वैद्य हैं, पर आजकल
हरेक आदमी इलाज करना चाहता है । इसको अमुक चीज दे दो, ठीक हो जायगा; अमुक चीज मत
दो, उससे ठीक नहीं होगा‒ऐसी सम्मति चलते-चलते
दे देते हैं । उनसे पूछो कि तुमने आयुर्वेद पढ़ा है ? ना । वैद्यकी करते हो
? ना । यह बुद्धिका अजीर्ण है । गोस्वामी तुलसीदासजी महाराजका जन्म बीत गया राम-रामके ऊपर ।
पहले उनका नाम ‘रामबोला’ था; क्योंकि जन्म लेते समय वे ‘राम’ बोले । ‘तुलसीदास’
नाम तो पीछे हुआ । वे कहते हैं‒ भायँ कुभायँ अनख
आलसहूँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥ (मानस, बालकाण्ड २८/१) भगवान्का नाम लेते ही दसों दिशाओंमें मंगल-ही-मंगल होता है । दुर्भावसे भी नाम लिया जाय तो वह भी कल्याण करता है । परन्तु लोग कहते हैं कि मन नहीं लगा तो कुछ नहीं ! भाई-बहन ध्यान देकर मेरी बातपर विचार करें । पहले मन लग जाय, फिर नाम लेंगे‒ऐसा कभी होनेवाला नहीं है । भगवान्का नाम लेते-लेते ही मन लगेगा । कम-से-कम आप नाम लेना शुरू तो कर दो । लोग खुद तो कुछ करते नहीं और ‘मन नहीं लगा तो कोई फायदा नहीं’‒ऐसा कहकर दूसरोंका भी साधन छुड़ा देते हैं ! आप भी नरकोंमें जाते हैं और दूसरोंको भी ले जाते हैं । सज्जनो ! खास खतरनाक चीज क्या है ? नाशवान् वस्तुओंमें हमारा जो मोह है, प्रियता है, खिंचाव है, यह है खतरेकी चीज । नाशवान्की प्रियता ही आपको रुलाएगी‒‘प्रियस्त्वां रोदयति ।’ |