।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                                                    




           आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी वि.सं.२०७७, मंगलवा

सदुपयोगसे कल्याण


अब आप विचार करें, इतना दान-पुण्य करनेपर भी युधिष्ठिरजीका यज्ञ उतना बड़ा नहीं हुआ, जितना उस ब्राह्मणके द्वारा हुआ । अधिक दान देनेसे अधिक पुण्य हो जायगा‒यह बात है ही नहीं । बहनोंके मनमें बहुत रहती है कि हमारे पास धन होगा तो ऐसा दान करूँगी, ऐसा उद्यापन करूँगी, वैशाख नहाऊँगी, ऐसा करूँगी, वैसा करूँगी । न जाने कितने-कितने मनोराज्य होते हैं ! बहनों ! आपके पास जितना है, उसके अनुसार करो । मालपर जगात (टैक्स) लगती है । आपके पास माल नहीं तो जगात किस बातकी ? आपके पास जितना है, उतना ही आपपर लागू होता है ।

सत्त सारु बाँटिये,    ‘नापो’   कहत  नरां ।

निपट नकारो न दीजिये, उणद देख घरां ॥

‘नापो कवि कहते हैं कि मनुष्यो ! अपनी शक्तिके अनुसार दान दो । घरमें अभाव देखकर किसीको साफ़ ‘ना’ मत कहो, प्रत्युत कुछ-न-कुछ दे दो ।

शक्तिके अनुसार दो तो वह बड़ा भारी दान हो जायगा । महिमा वस्तुके सदुपयोगकी है । यह नहीं कि ज्यादा धन होगा तो हम दान-पुण्य करेंगे; तीर्थ, व्रत, यज्ञ आदि करेंगे, बड़े-बड़े सत्संग-समारोह करेंगे; परन्तु क्या करें, हमारे पास पैसा नहीं है ! सज्जनो ! पैसा नहीं है तो आपपर दान, तीर्थ, व्रत, यज्ञ आदि करना लागू ही नहीं होता । आप भी छोटे बालकसे उतनी ही आशा रखते हैं, जितना वह कर सकता है । क्या भगवान्‌ आप-जितने भी जानकार और दयालु नहीं हैं ? क्या भगवान्‌ आपकी शक्तिको नहीं जानते ? आपको उतना ही करना है, जितनी आपकी शक्ति है । आपके पास जो योग्यता, परिस्थिति आदि है, उसका सदुपयोग करो तो कल्याण कम नहीं होगा । युधिष्ठिरजीसे उस ब्राह्मणका यज्ञ कम नहीं था । पासमें खानेको भी नहीं था; परन्तु यज्ञ हो गया युधिष्ठिरजीके यज्ञसे बढ़कर !

ऐसी इच्छा न करें कि अधिक हो जाय तो अधिक करेंगे । जो पासमें है, उसीका अच्छे-से-अच्छा उपयोग करो । प्राप्त परिस्थितिका बढ़िया-से-बढ़िया सदुपयोग करें तो वह काम छोटा नहीं होगा, बड़े महत्त्वका हो जायगा । मैंने एक कथा सुनी है । वह किसी दाक्षिणात्य रामायणमें आती है, ऐसा सुना है । रामजी और रावणका आपसमें धमासान युद्ध हो रहा था । इतनेमें एक गिलहरी दोनों हाथोंमें तिनका लेकर रामजीसे पास पहुँची और बोली कि मैं अभी रावणको मार दूँ ! भगवान्‌ उसपर प्रसन्न हो गये । उसपर हाथ रखा, जिससे (अँगुलियोंके स्पर्शसे) वे लकीरें हो गयीं । गिलहरीमें रावणको मारनेकी क्या ताकत है ? पर उसने अपना पूरा बल लगा दिया, जिससे भगवान्‌ खुश हो गये ।

आप दूसरेके उद्धारके लिये अपनी पूरी शक्ति लगा दें । भगवान्‌ देखते हैं कि मामूली शक्ति होते हुए भी वह दूसरोंके उद्धारके लिये चेष्टा करता है तो मैं कम-से-कम इसका उद्धार तो कर ही दूँ ! साधारण शक्तिवाला भी जब अपनी पूरी शक्ति लगाकर दूसरोंके हितकी चेष्टा करता है, तो अच्छे-अच्छे सन्त महात्माओंपर और भगवान्‌पर भी उसका असर पड़ता है ।