।। श्रीहरिः ।।

                                                                                       


आजकी शुभ तिथि–
     आषाढ़ कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७८ शुक्रवार

                 तू-ही-तू

(३)

सब कुछ भगवान्‌ ही हैं‒यह गीताका सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त है और इसका अनुभव करनेवालेको भगवान्‌ अत्यन्त दुर्लभ महात्मा कहा है‒वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ (गीता ७/१९)

श्रीमद्भागवतमें भगवान्‌ने कहा है‒

अयं हि सर्वकल्पानां सघ्रीचीनो मतो मम ।

मद्भावः सर्वभूतेषु   मनोवाक्कायवृत्तिभिः ॥

(११/२९/१९)

‘मेरी प्राप्तिके जितने साधन हैं, उनमें मैं सबसे श्रेष्ठ साधन यही समझता हूँ कि समस्त प्राणियों और पदार्थोंमें, मन, वाणी तथा शरीरके बर्तावमें मेरी ही भावना की जाय ।’

उपनिषदोंमें इस बातको समझनेके लिये तीन दृष्टान्त दिये गये हैं‒सोनेका, लोहेका और मिट्टीका । जैसे सोनेके अनेक गहने होते हैं । उन गहनोंकी आकृति, नाम, रूप, तौल, उपयोग, मूल्य आदि अलग-अलग होनेपर भी उनमें सोना एक ही होता है । लोहेके अनेक अस्त्र-शस्त्र होते हैं, पर उनमें लोहा एक ही होता है । मिट्टीके अनेक बर्तन होते हैं, पर उनमें मिट्टी एक ही होती है । ऐसे ही भगवान्‌से उत्पन्न हुई सृष्टिमें अनेक प्राणी, पदार्थ आदि होनेपर भी उनमें भगवान्‌ एक ही हैं ।

सोनेसे बने हुए गहनोंमें सोना प्रत्यक्ष दीखता है, लोहेसे बने हुए अस्त्र-शस्त्रोंमें लोहा प्रत्यक्ष दीखता है और मिट्टीसे बने हुए बर्तनोंमें मिट्टी प्रत्यक्ष दीखती है; परन्तु परमात्मासे बने हुए संसारमें परमात्मा प्रत्यक्ष नहीं दीखते । इसलिये सब कुछ परमात्मा ही हैं‒इस बातको समझनेके लिये गेहूँके खेतका दृष्टान्त दिया जाता है ।

किसानलोग गेहूँकी हरी-भरी खेतीको भी गेहूँ ही कहते हैं । खेतीको गाय खा जाती है तो वे कहते हैं कि तुम्हारी गाय हमारा गेहूँ खा गयी, जबकि गायने गेहूँका एक दाना भी नहीं खाया ! खेतमें भले ही गेहूँका एक दाना भी न दिखायी दे, पर यह गेहूँ है‒इसमें किसानको किंचिन्मात्र भी संदेह नहीं होता । कोई शहरमें रहनेवाला व्यापारी हो तो वह उसको गेहूँ नहीं मानेगा, प्रत्युत कहेगा कि यह तो घास है, गेहूँ कैसे हुआ ? मैंने बोरे-के-बोरे गेहूँ ख़रीदा और बेचा है, मैं जानता हूँ कि गेहूँ कैसा होता है । परन्तु किसान यही कहेगा कि यह वह घास नहीं है, जिसको पशु खाया करते हैं । यह तो गेहूँ है । कारण कि आरम्भमें बीजके रूपमें गेहूँ ही था और अन्तमें भी इसमेंसे गेहूँ ही निकलेगा । अतः बीचमें खेतीरूपसे यह गेहूँ ही है । जो आरम्भ और अन्तमें होता है, वही बीचमें भी होता है‒यह सिद्धान्त है‒

यस्तु यस्यादिरन्तश्च स वै मध्यं च तस्य सन् ।

(श्रीमद्भा ११/२४/१७)