।। श्रीहरिः ।।

                      


आजकी शुभ तिथि–
  आश्विन शुक्ल चतुर्दशी वि.सं.-२०७८,  मंगलवार
                             

विकार आपमें नहीं हैं


ये शरीर, इन्द्रियाँ आदि प्रकृतिमें ही स्थित रहते हैं, कभी प्रकृतिको छोड़कर आपमें आते ही नहीं । वास्तवमें आप प्रकृतिमें स्थित नहीं हो, प्रत्युत भगवान्‌के अंश होनेसे भगवान्‌में स्थित हो । ‘अहम्‌’ तो प्रकृति है । प्रकृतिको धारण करो अथवा न करो‒इसमें आप स्वतन्त्र हो । इनमें आप पराधीन नहीं हो । जिस ज्ञानके अन्तर्गत ‘अहम्‌’ दीखता है, उस ज्ञानमें ‘अहम्‌’ नहीं है । आप उस ज्ञानमें स्थित रहो । उसमें आपकी स्थिति स्वतः है ।

अपना जो स्वरूप है, उस प्रकाशमें ‘अहम्‌’ दीखता है । अगर वह नहीं दीखता, तो ‘अहम्‌’ है‒इसमें क्या गवाह है ? आप खुद अपरा प्रकृतिको पकड़ते हो । आप जिसको पकड़ते हो, अधिकार देते हो, वही आपपर अधिकार करता है । आप अधिकार नहीं दो तो उसमें आपपर अधिकार जमानेकी ताकत नहीं है । आने-जानेवाला आपपर अधिकार कैसे जमायेगा ? उसको आप ‘मैं’ और ‘मेरा’ मान लेते हो, तब आफत आती है ।

सुख-दुःख दीखते हैं । विकार दीखते हैं । जैसे सब वस्तुएँ एक प्रकाशमें दीखती हैं, ऐसे ही ‘अहम्‌’ एक प्रकाशमें दीखता है । प्रकाश न हो तो ‘अहम्‌’ दीखे ही नहीं । ‘अहम्‌’ को आप पकड़ते हो तो किसी गवाहसे नहीं, प्रत्युत स्वतन्त्रतासे पकड़ते हो । कोई आपको मदद करके पकड़ानेवाला है ही नहीं । ‘अहम्‌’ को आपने माना है तो आप ‘अहम्‌’ को न मानें । सन्तोंने कहा है‒‘देखो निरपख होय तमाशा’ निरपेक्ष होकर तमाशा देखो । जो प्रकाश अपना स्वरूप है, उसमें ‘अहम्‌’ को धारण मत करो ।

गाढ़ नींदमें ‘अहम्‌’ का भान नहीं होता । जागनेपर कहते हो कि ‘नींदमें मेरेको कुछ पता नहीं था’; अतः वहाँ ‘अहम्‌’ नहीं था, पर आप तो थे ही । गाढ़ नींदमें ‘मैं अभी सोया हुआ हूँ’‒ऐसा आपको अनुभव नहीं होता । जागनेपर ही आप कहते हो कि मैं ऐसा सोया, मेरेको कुछ पता नहीं था । ‘कुछ पता नहीं था’‒यह स्मृति है । स्मृति अनुभवजन्य होती है‒‘अनुभूतविषयासम्प्रमोषःस्मृतिः’ (योगदर्शन १/११) । आपको स्मृति आती है कि मैं गहरी नींदमें सोया । गहरी नींदमें ‘अहम्‌’ (मैं) लीन था, पर आप लीन नहीं हुए थे । अगर आप लीन हो जाते तो ‘मेरेको गाढ़ नींद आयी, मेरेको कुछ पता नहीं था’‒यह नहीं कह सकते थे ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे