।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
दुर्गुणोंका त्याग


(गत ब्लॉगसे आगेका)
पाशुपतास्त्र बहुत कम आदमियोंके पास है । महाभारतका युद्ध हुआ, उसमें भगवान्‌ शंकरका दिया हुआ पाशुपतास्त्र अर्जुनके पास था, भगवान्‌ शंकरने कह दिया कि तुम्हें चलाना नहीं पड़ेगा । यह तुम्हारे पास पड़ा-पड़ा विजय कर देगा, चलानेकी जरूरत नहीं, चला दोगे तो संसारमें प्रलय हो जायगा । इसलिये चलाना नहीं ।

        सज्जनो ! ऐसे आपको पापसे बचनेके लिये पाशुपतास्त्र बताता हूँ, आप कृपा करके सुनें और उसे धारण कर लें, बड़ी भारी कृपा मानूँगा । वह क्या कि मर जायेंगे पर पाप नहीं करेंगे, अन्याय नहीं करेंगे ! नहीं करेंगे ! नहीं करेंगे ! ऐसा आपका केवल विचार हो जाय । ऐसा करनेसे आप बिना अन्नके मर जाओगे यह बात नहीं होगी । अन्नके बिना मरना पड़े तो भी परवाह नहीं, पर पाप-अन्याय नहीं करेंगे । यह है अस्त्रका चलाना । यह चलाना नहीं पड़ेगा । पक्का विचार पड़ा-पड़ा आपकी विजय कर देगा । हमें मौत स्वीकार है, आफत स्वीकार है, पर पाप स्वीकार नहीं है, ऐसा पक्का विचार होनेपर आपसे कोई पाप करवा नहीं सकता, अन्याय करवा नहीं सकता । किसीकी ताकत नहीं कि अन्याय करवा ले । साथमें रखिये भगवान्‌का भरोसा । याद करते रहो कि नाथ ! यह बात तो मेरी है, पर बल आपका है । इस बातके निभानेमें बल आपका होगा, तब होगा काम । अर्जुनको भगवान्‌ने कहा कि तू निमित्तमात्र बन जा ।
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ।
                                      (गीता ११/३३)
          निमित्तमात्र तो मैं बन जाता हूँ, परन्तु यह काम कर लेना ठीक तरहसे यह मेरी ताकतके बाहरकी बात है । हे नाथ ! आप निभाओ । ‘उस सेवककी लाज, प्रतिज्ञा राखे साईं’, ‘आछी करे सौ रामजी’ रामजी करते है अच्छा करते हैं, भगवान्‌के द्वारा अपना अच्छा-ही-अच्छा होता है, रक्षा होती है, सहायता होती है, फायदा होता है, नुकसान होता ही नहीं ।

           ‘भूंडी बनै सौ आपकी’‒भूंडी (बुरी) तो आपकी है, खुदकी है, खराब खुद करता है । अगर खुद तैयार नहीं होता तो कोई नहीं करवा सकता । कानूनने ऐसा कर दिया, लोगोंने ऐसा कर दिया, कुसंगने ऐसा कर दिया, वायु-मण्डल ऐसा ही आ गया, हमारा भाग्य ऐसा ही था, संग अच्छा नहीं मिला, गुरु नहीं मिले आदि-आदि बातें सब बहानेबाजी हैं और कुछ नहीं । कोई भी किंचिन्मात्र भी आपका बिगड़ कर नहीं सकता, जबतक आप बिगाड़के लिये तैयार न हो जायें और उसमें भी अपना विचार पक्का रखें और सहारा भगवान्‌का हो । भीतरसे पुकारता रहे प्रभुको कि हे नाथ ! बिना आपकी कृपाके हमारेसे नहीं होगा यह । ऐसे कृपाका भरोसा हो तो उसका पतन कभी हो नहीं सकता ।

           भगवान्‌के चरणोंकी शरण लेनेसे भगवान्‌ कहते हैं‒
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ।
                                                         (गीता १८/६६)
           सब पापोंसे मैं मुक्त कर दूँगा । तू चिन्ता मत कर । ‘मामेकं शरणं व्रज’ शर्त यह है । शरण यदि धनकी लेगा; झूठ, कपट, बेईमानीका आश्रय रखेगा, तो भाई, मेरे हाथकी बात नहीं । मनुष्य क्या करता है ? झूठ, कपट, बेईमानीका सहारा लेता है ।

     (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे