(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
पाशुपतास्त्र
बहुत कम
आदमियोंके
पास है ।
महाभारतका
युद्ध हुआ,
उसमें
भगवान्
शंकरका दिया
हुआ
पाशुपतास्त्र
अर्जुनके पास
था, भगवान्
शंकरने कह
दिया कि
तुम्हें
चलाना नहीं
पड़ेगा । यह
तुम्हारे
पास पड़ा-पड़ा
विजय कर देगा,
चलानेकी
जरूरत नहीं,
चला दोगे तो
संसारमें
प्रलय हो
जायगा ।
इसलिये
चलाना नहीं ।
सज्जनो
! ऐसे आपको
पापसे
बचनेके लिये
पाशुपतास्त्र
बताता हूँ, आप
कृपा करके
सुनें और उसे
धारण कर लें,
बड़ी भारी
कृपा
मानूँगा । वह
क्या कि मर
जायेंगे पर
पाप नहीं
करेंगे, अन्याय
नहीं करेंगे !
नहीं करेंगे !
नहीं करेंगे ! ऐसा आपका
केवल विचार
हो जाय । ऐसा
करनेसे आप
बिना अन्नके
मर जाओगे यह
बात नहीं
होगी ।
अन्नके बिना
मरना पड़े तो
भी परवाह
नहीं, पर पाप-अन्याय
नहीं करेंगे ।
यह है
अस्त्रका
चलाना । यह
चलाना नहीं
पड़ेगा ।
पक्का विचार
पड़ा-पड़ा आपकी
विजय कर देगा ।
हमें मौत
स्वीकार है,
आफत स्वीकार
है, पर पाप स्वीकार
नहीं है, ऐसा
पक्का विचार
होनेपर आपसे
कोई पाप करवा
नहीं सकता,
अन्याय करवा
नहीं सकता ।
किसीकी ताकत
नहीं कि
अन्याय करवा
ले । साथमें
रखिये
भगवान्का
भरोसा । याद
करते रहो कि
नाथ ! यह बात तो
मेरी है, पर बल
आपका है । इस
बातके
निभानेमें
बल आपका होगा,
तब होगा काम । अर्जुनको
भगवान्ने
कहा कि तू
निमित्तमात्र
बन जा ।
निमित्तमात्रं
भव
सव्यसाचिन् ।
(गीता ११/३३)
निमित्तमात्र
तो मैं बन
जाता हूँ,
परन्तु यह काम
कर लेना ठीक
तरहसे यह
मेरी ताकतके
बाहरकी बात
है । हे नाथ ! आप
निभाओ । ‘उस
सेवककी लाज,
प्रतिज्ञा
राखे साईं’,
‘आछी करे सौ रामजी’ रामजी करते
है अच्छा
करते हैं,
भगवान्के
द्वारा अपना
अच्छा-ही-अच्छा
होता है,
रक्षा होती
है, सहायता
होती है,
फायदा होता
है, नुकसान
होता ही नहीं ।
‘भूंडी
बनै सौ आपकी’‒भूंडी
(बुरी) तो आपकी
है, खुदकी है,
खराब खुद
करता है । अगर
खुद तैयार
नहीं होता तो
कोई नहीं
करवा सकता ।
कानूनने ऐसा
कर दिया,
लोगोंने ऐसा
कर दिया, कुसंगने
ऐसा कर दिया,
वायु-मण्डल
ऐसा ही आ गया,
हमारा भाग्य
ऐसा ही था, संग
अच्छा नहीं
मिला, गुरु
नहीं मिले
आदि-आदि
बातें सब
बहानेबाजी
हैं और कुछ
नहीं । कोई
भी
किंचिन्मात्र
भी आपका बिगड़
कर नहीं सकता,
जबतक आप
बिगाड़के
लिये तैयार न
हो जायें और उसमें
भी अपना
विचार पक्का
रखें और
सहारा भगवान्का
हो । भीतरसे
पुकारता रहे
प्रभुको कि
हे नाथ ! बिना आपकी
कृपाके
हमारेसे
नहीं होगा यह ।
ऐसे कृपाका
भरोसा हो तो
उसका पतन कभी
हो नहीं सकता ।
भगवान्के
चरणोंकी शरण
लेनेसे
भगवान्
कहते हैं‒
अहं
त्वा
सर्वपापेभ्यो
मोक्षयिष्यामि
मा शुचः ।
(गीता १८/६६)
सब
पापोंसे मैं
मुक्त कर
दूँगा । तू
चिन्ता मत कर ।
‘मामेकं
शरणं व्रज’ शर्त यह है ।
शरण यदि धनकी
लेगा; झूठ, कपट,
बेईमानीका
आश्रय रखेगा,
तो भाई, मेरे
हाथकी बात
नहीं ।
मनुष्य क्या
करता है ? झूठ,
कपट,
बेईमानीका
सहारा लेता
है ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनोपयोगी
प्रवचन’
पुस्तकसे
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