(गत ब्लॉगसे
आगेका)
एक
सन्त मिले थे, अन्धे
थे । उन्होंने
कहा कि मुझे वैराग्य
हुआ और बाहर जंगलमें
रहता था । ठंडक
आ गयी तो एक भक्तने
बढ़िया कम्बल दे
दी । वह कम्बल ही
मेरे पास थी और
कोई चीज बढ़िया
नहीं । रात्रिमें
एकान्त था तो कुछ
आदमी आये, शब्द
सुनायी दिया, उनकी
वाणी सुनी । मनमें
विचार आया कि न
जाने डाकू हैं
कि चोर हैं, न जाने
कौन हैं ? मेरे पास
यह कम्बल है इसे
देखकर ये ले जायेंगे
तो पहले अपने ही
इनसे बात कर लो
। तो उनसे बोले
कि भाई ! बोलो कौन
हो, क्या बात है
? उन्होंने आकर
देखा कि ये तो बाबाजी
हैं । ऐसा देखकर
बोले कि महाराज
! आप सन्त हैं, इसलिये
हम आपसे सच्ची
बात कह देते हैं
कि हम चोरी करने
जा रहे हैं, हमारा
पेशा चोरी करनेका
है, हम तो गृहस्थ
हैं । अपना कमाकर
खानेवाले हैं
परन्तु राज्यका
लगान बहुत बढ़ गया
है, वह दे नहीं सकते,
इसलिये हम चोरी
करने जा रहे हैं
। सन्तने कहा कि
भैया, चोरी करना
अच्छा नहीं है
। उन्होंने कहा
कि हम भी अच्छा
नहीं समझते; परन्तु
करें क्या ? इतना
लगान कहाँसे दें
? हमारे पास हैं
नहीं । उनसे इतनी
बात की, पर बाबाकी
कम्बल नहीं ली
। आदमी लोभमें
ऐसा करता है, लोभमें
चोरी करे, दूसरोंको
दुःख दे, धन मार
ले, कितने पापकी
बात है, कितने अन्यायकी
बात है । यह
एक विलक्षण बात
है कि निर्धन होनेपर
भी, आफत आनेपर भी
पाप न करे । दुःख
पा ले, पर पाप न करे,
अन्याय न करे ।
सिबि
दधीच हरिचंद
नरेसा ।
सहे
धरम हित कोटि कलेसा
॥
(मानस
२/९४/२)
धर्मके
लिये करोड़ों कष्ट
सह लिये, पर अपने
धर्मसे विचलित
नहीं हुए ।
धीरज धर्म मित्र अरु नारी ।
आपद
काल परिखिअहिं
चारी ॥
(मानस
३/४/४)
इनकी
परीक्षा आपत्तिके
समय होती है । मनुष्यके
लिये बहुत ही आवश्यक
है कि धैर्य खोवे
नहीं । जोरसे
हवा आती है कभी-कभी,
तो बड़े-बड़े वृक्ष
टूट जाते हैं ।
पर उस हवामें भी
जो ठीक रह जाय तो
फिर वह मौजसे रहता
है, कोई खतरा नहीं
। इसी तरह काम, क्रोध,
लोभ आदिकी हवाका
झोंका मिट जाता
है तो फिर ठीक हो
जाता है । थोड़ा-सा
धैर्य रखें । कैसी
भी आफत आ जाय, पाप
नहीं करेंगे, अन्याय
नहीं करेंगे, शास्त्र-निषिद्ध
आचरण नहीं करेंगे,
भूखे मरेंगे तो
मर जायेंगे और
क्या होगा, बताओ
? पासमें कुछ नहीं
है तो भूखे मर जायेंगे,
इसके सिवा दण्ड
होगा नहीं । पाप
करोगे तो नरकोंमें
जाना पड़ेगा और
चौरासी लाख योनियोंमें
भटकना पड़ेगा ।
यह बात स्वीकार
कर ले तो उससे कोई
शक्ति कभी पाप
करवा नहीं सकेगी
।
शास्त्रोंमें
ब्रह्मा, विष्णु,
महेश तीनोंके
अस्त्रोंका वर्णन
आता है । ब्रह्माजीका
ब्रह्मास्त्र
है, भगवान् विष्णुका
नारायणास्त्र
है और शिवजीका
पाशुपतास्त्र
है । ये मन्त्रोंके
प्रयोगसे चलते
हैं । ब्रह्मास्त्र
जिसपर छोड़ दिया
जाता है तो उसे
खत्म कर देता है
। ब्रह्मास्त्रका
उपाय है उसका उपसंहार
करना । मन्त्रोंसे
उसको उलटा देनेसे
वह आगे दखल नहीं
देता । नारायण-अस्त्र
छूट जाता है तो
वह भी खातमा कर
देता है । उसका
उपाय है कि शरण
हो जाय, लम्बे पड़
जाय । शरण ले लेनेसे
वह नारायण-अस्त्र
नहीं मारता है
। परन्तु पाशुपतास्त्र
छोड़नेपर चाहे
कुछ भी करो वह तो
संहार करेगा ही
।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनोपयोगी
प्रवचन’ पुस्तकसे
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