(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
जिस
गतिसे
संतति-निरोधके
उपायोंका
प्रसार हो
रहा है, ऐसे
होता रहा तो
समाजमें
बहुत अधिक व्यभिचार
फैल जायगा ।
जिस पुरुषने नसबंदी
करवा ली, उसके
लिये कोई
परस्त्री
(विवाहिता,
अविवाहिता,
विधवा) बाकी
नहीं रहेगी
और जिस
स्त्रीने
ऑपरेशन करवा
लिया, उसके
लिये कोई
परपुरुष
बाकी नहीं
रहेगा । न कोई
मर्यादा
रहेगी, न कोई
भय रहेगा । अभी
पुराने
धार्मिक
संस्कारोंके
प्रवाहके कारण
उतना पतन
देखनेमें
नहीं आ रहा है,
पर यह प्रवाह
कबतक रहेगा ?
ठेलेको धक्का देनेसे
वह कुछ दूरतक
अपने-आप चलता
रहता है, फिर
रुक जाता है ।
इसी तरह जब
धार्मिक
संस्करोंका
प्रवाह रुक जायगा,
तब
स्त्रियों
और
पुरुषोंमें
कोई मर्यादा
नहीं रहेगी । माँका
पता है, पर
बापका पता ही
नहीं—ऐसी दशा
तो
विदेशोंमें
अभी
सुननेमें आ
ही रही है ! व्यभिचार फैलनेसे
देशकी क्या
दशा होगी,
कितना अनर्थ
होगा—इसका
अनुमान नहीं
लगाया जा
सकता ।
परिणाम यह
होगा कि पशु
और
मनुष्यमें
कोई फर्क
नहीं रहेगा । जैसे कुत्ता,
गधा, सूअर, ऊँट,
चूहा, बिल्ली
आदि हैं, ऐसे
ही मनुष्य भी
हो जायँगे ।
जैसे कुत्ते,
गधे आदिको हम
कोई अच्छी
बात समझाना
चाहें तो
नहीं समझा
सकते, ऐसे ही
उन मनुष्यरूपी
पशुओंको भी
कोई अच्छी
बात नहीं
समझा सकेंगे ।
संतति-निरोधके
मूलमें केवल
सुखभोगकी
इच्छा विद्यमान
है । अपनी
संतान इसलिये
नहीं सुहाती
कि वह हमारे
सुखभोगमें
बाधक है । ऐसी
स्थितिमें
अपने माँ-बाप,
भाई-बहन कैसे
सुहायेंगे ? जब चोर चोरी
करने जाता है,
तब उसको
दूसरा कोई आदमी
नहीं सुहाता ।
व्यभिचारीको
कोई स्त्री
मिलती है, तब
वह भी यही
चाहता है कि
पासमें
दूसरा कोई
आदमी न रहे* । इसी तरह
जब
मनुष्योंमें
सुखभोगकी
इच्छा बढ़
जायगी, तब उनको
दूसरा कोई
आदमी
सुहायेगा ही
नहीं, इतना ही
नहीं, उनको
त्यागी साधु-सन्त
भी नहीं
सुहायेंगे,
अच्छी
शिक्षा
देनेवाले और
संयम,
मर्यादा,
धर्मकी बात
कहनेवाले भी नहीं
सुहायेंगे;
क्योंकि वे
सुखभोगसे,
व्यभिचारसे
रोकते हैं । अपने सुखभोगमें
बाधक समझकर
भोगीलोग
उनको भी
मारने लगेंगे
। गलती
मत मिटाओ,
गलती
बतानेवालेको
मिटाओ—यह
प्रस्ताव
पारित किये
जायँगे ! जैसे, बच्चोंकी सभा हो
तो ये
प्रस्ताव पारित
करेंगे कि सब
स्कूलोंको
बंद करो, ये एक
तरहसे
जेलखाना हैं ।
कारण कि
पढ़ाईमें
परतन्त्रता
होती है,
स्वतन्त्रतामें
बड़ी बाधा
लगती है !
(२) हिंसाकी
वृध्धि—देशमें
हिंसा बहुत
बढ़ रही है ।
प्राप्त
समाचारोंके
अनुसार इस
समय देशमें तीन
हजार छः सौ
कसाईखाने
हैं । इनमें
दस बड़े
यान्त्रिक
(मशीनी)
कसाईखाने
हैं । इन
कसाईखानोंमें
लगभग ढाई लाख
पशु
प्रतिदिन कटते
हैं । इन
पशुओंमें
लगभग पचास
हजार गायें
प्रतिदिन कटती
हैं ।
प्रतिवर्ष
हजारों टन
मांस
निर्यात
होता है ।† इसके सिवाय
विभिन्न
क्षेत्रोंमें
हिंसा बढ़ रही
है ।
मनुष्योंकी
हत्याओंमें
वृद्धि हो
रही है ।
खेतोंमें
जहरीली
दवाएँ छिड़की
जाती हैं,
जिससे
अनुपयोगी
समझे जानेवाले
जीवोंके
साथ-साथ
उपयोगी जीव
भी मर जाते
हैं । वास्तवमें
भगवान्की
सृष्टिमें
कोई जीव
अनुपयोगी है
ही नहीं ।
परन्तु
लोभसे अन्धे
हुए
मनुष्यको
दूसरे जीवकी
उपयोगिता
दिखाई देती
ही नहीं !
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
−‘देशकी
वर्तमान दशा
और उसका
परिणाम’
पुस्तकसे
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सुवरण
को ढूंढ़त
फिरत, कवि
व्यभिचारी
चोर ।
चरण
धरत धड़कत
हियो, नेक न
भावत शोर ॥
† यह जानकारी
पुस्तक
प्रकाशित
हुई तबके है,
वर्तमानमें
कितना
पशुओंका वध
होता होगा ?
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