।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण द्वादशी, वि.सं.–२०७०, रविवार
परमात्मा सगुण हैं या निर्गुण ?



शास्त्रमें आया है कि जीवकी उपाधि अविद्या हैजो मलिन सत्त्वप्रधान है और ईश्वर ( सगुण) की उपाधि माया हैजो शुद्ध सत्त्वप्रधान है । इस बातको लेकर ऐसी मान्यता है कि परमात्माका सगुणरूप मायिक हैवास्तविकरूप तो निर्गुण-निराकार ही है । परन्तु वास्तविक दृष्टिसे देखें तो यह मान्यता सही नहीं है । जीवको नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वरूप ब्रह्म माना गया है‒‘अयमात्मा ब्रह्म’‘तत्त्वमसि’ आदि । विचार करना चाहिये कि जब अविद्यामें पड़ा हुआमलिन सत्त्वकी उपाधिवाला जीव भी स्वरूपसे ब्रह्म ही है तो फिर शुद्धसत्त्वप्रधान ईश्वर नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वरूप क्यों नहीं है वह मायिक कैसे हो गया ? ईश्वर तो मायाका अधिपति है । सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका) से किसीने कहा कि ईश्वर और जीव‒यें दोनों मायारूपी धेनुके बछड़े हैं । सेठजी बोले कि मायारूपी धेनुका बछड़ा जीव हैईश्वर नहीं । ईश्वर तो साँड़ अर्थात् मायाका अधिपति है । जैसे साँड़ गायोंका मालिक होता हैऐसे ही ईश्वर मायाका मालिक है‒
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥
                                                   (गीता ४ । ६)

माया बस्य जीव अभिमानी । ईस बस्य माया गुन खानी ॥ परबस जीव स्वबस भगवंता ।  जीव  अनेक एक श्रीकंता ॥
                                            (मानस ७ । ७८ । ३४)

जगत प्रकास्य प्रकासक रामू । मायाधीस ग्यान गुन धामू ॥
                                            (मानस १ । ११७ । ४)

भागवतमें आया है‒
वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम् ।
ब्रह्मेति परमात्मेति  भगवानिति शब्द्यते ॥
                                                   (१ । २ । ११)

 ‘तत्त्वज्ञ पुरुष उस ज्ञानस्वरूप एवं अद्वितीय तत्त्वको ही ब्रह्मपरमात्मा और भगवान्‒इन तीन नामोंसे कहते हैं ।’तात्पर्य है कि परमात्मतत्त्व निर्गुण-निराकार (ब्रह्म) भी है,सगुण-निराकार (परमात्मा) भी है और सगुण-साकार (भगवान्) भी है ।

गीतामें निर्गुण-निराकारसगुण-निराकार और सगुण-साकार‒तीनोंके लिये ‘ब्रह्म’ शब्द आया है । जैसे,निर्गुण-निराकारके लिये ‘निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिता: ॥’ (५ । ११)‘अक्षर ब्रह्म परमम्’ (८ । ३),‘अनादिमत्परं ब्रह्म’ (१३ । १२) आदिसगुण-निराकारके लिये ‘तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥’ (३ । १५)‘ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविध स्मृत: ।’ (१७ । २३) आदि और सगुण-साकारके लिये ‘ब्रह्मण्याधाय कर्माणि’(५ । १०)‘परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् । ' ( १० । १२) पद आये हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे