।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
मुक्तिका सरल उपाय


(गत ब्लॉगसे आगेका)
यहाँ (ऋषिकेशमें) एक सज्जन थे । वटवृक्षके नीचे सत्संग हो रहा था । उधर बद्रीनारायणकी तरफ जो रास्ता जा रहा है, उसपर कई लोग जा रहे थे । उनको देखकर वे सज्जन कहते थे कि मेरे मनमें आता है है कि लोग उधरसे जा रहे हैं, अगर यहाँसे होकर जायँ तो थोड़ा सत्संग कर लें ! ऐसा भाव बनानेमें कोई पैसा लगता है ?
        भगवान्‌ कहते हैं—
‘ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः’
                                                                         (गीता १२/४)
        ‘जो प्राणिमात्रके हितमें रत हैं, वे मेरेको ही प्राप्त होते हैं ।’       

प्राणिमात्रके हितका भाव भजन है । भजन भी वजनदार है, मामूली नहीं । बीमार पड़ें तो पड़े-पड़े भी भाव रखो कि सब भगवान्‌के भक्त हो जायँ । हे नाथ ! सब आपके दर्शनमें लग जायँ, आपके प्रेममें लग जायँ, आपके भजनमें लग जायँ । कितनी बढ़िया बात है ! वे भजनमें लगे या न लगें, यह आपका ठेका नहीं है । नहीं लगे तो उनकी मर्जी ! हम कहें कि सत्संगमें चलो, वे कहें कि चल हट, हम नहीं जायँगे ! तो अच्छा बाबा, ठीक है ! मूँडवा (राजस्थान) में एक सज्जन थे । वे लोगोंको कहते कि सत्संगमें चलो, लोग कहते कि वक्त नहीं है । दूसरे दिन फिर कहते कि सत्संगमें चलो तो लोग कहते कि वक्त नहीं है । तीसरे दिन फिर कहते कि सत्संगमें चलो ! लोग ताड़ना करते, पर वे परवाह ही नहीं करते । अब ठाकुरजी उनपर राजी नहीं होंगे तो किसपर राजी होंगे ! किसीसे कुछ लेना नहीं, कोई स्वार्थका सम्बन्ध नहीं, फिर भी भाव यह है कि लोग सत्संगमें लग जायँ, भगवान्‌के सम्मुख हो जायँ । ऐसा भाव बनानेमें क्या खर्चा लगता है आपका ? एक कहावत आती है‘हींग लगे न फिटकड़ी, रंग झकाझक आये ।’ आध्यात्मिक उन्नति करनेकी यह अटकल किसी-किसीके हाथ लगती है । ऐसी बढ़िया विद्या है यह !

श्रोताअभी आपने कहा, भगवान्‌से प्रार्थना करें कि हमें भी थोड़ा सेवाका मौका दो, तो ऐसा भगवान्‌से कहना अच्छा है या सेवा करनेवाली संस्थाओंमें जाकर कहना अच्छा है ?

        स्वामीजीदोनों ही करो । हम भिक्षाको जाते हैं तो माई पूछती है कि महाराज ! रोटी लाऊँ या खिचड़ी ? तो हम कहते हैं कि रोटीके ऊपर खिचड़ी ले आ ! हमें तो नफेकी बात लेनी है । किसीने पण्डितजीसे पूछा कि महाराज ! आप भोजन करोगे कि परोसा (भोजन बनानेकी सामग्री-राशन) ले जाओगे ? वे बोले कि भोजन भी करेंगे, परोसा भी ले जायँगे और यजमानको राजी भी रखेंगे ! ऐसा आप भी करो । खुद भी लगो, औरोंको भी लगाओ । जैसे धनी आदमीकी तरह-तरहसे आमदनी होती है, चारों तरफसे धन आता है, ऐसे ही आप भी सच्‍चे हृदयसे लग जाओ तो चारों तरफसे लाभ हो जाय !

        श्रोताजब सब भगवान्‌के प्रिय हैं, तो फिर संसारमें अन्याय क्यों हो रहा है ?

        स्वामीजीअन्याय होता नहीं है, अन्याय करते हैं । अन्याय करनेवाला जिसको कष्ट देता है, वह उसके पापोंका फल है, जिसको भोगकर वह शुद्ध हो रहा है । अतः उसपर अन्याय नहीं होता, प्रत्युत करनेवाला अन्याय करता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे