(गत ब्लॉगसे आगेका)
आपके हृदयमें दूसरोंको सुख पहुँचानेका भाव होगा,तो परिचित और अपरिचित, सबको प्रसन्नता होगी । आपके दर्शनसे दुनियाको शान्ति मिलेगी । कितनी उत्तम बात है ! कुछ भी न कर सको तो बैठे-बैठे मनमें विचार करो कि सब सुखी कैसे हो जायँ ? सब भगवान्के भक्त कैसे हो जायँ ? भगवान्से कहो कि हे नाथ ! सब आपके भक्त हो जायँ; सब आपके भजनमें लग जायँ; सब सत्संगमें लग जायँ; सब सत्-शास्त्रमें लग जायँ । अच्छी पुस्तकोंसे बहुत लाभ होता है । मैंने पुस्तकोंसे बहुत लाभ उठाया है और अब भी उठा रहा हूँ । आप भी देखो । यह असली लाभकी बात है ! दूसरोंको अच्छी पुस्तकें पढ़नेके लिये दो और कहो कि एक बार पढ़कर देखो तो सही, शायद आपको बढ़िया लगे । पढ़कर हमें लौटा देना और दूसरी पुस्तक ले लेना । इस तरह अच्छी पुस्तकोंका प्रचार करो, जिससे लोगोंका भाव बदले । इसके समान दूसरी सेवा नहीं है । दान-पुण्यसे बढ़कर सेवा है यह ! दूसरेको सत्-शास्त्रमें लगा देना, भजनमें लगा देना, सत्संगमें लगा देना बहुत ऊँची सेवा है । मुफ्तमें कल्याण होता है ! कलकत्तेके एक वैश्य भाईने मेरेसे कहा कि हमारे जो मालिक हैं, वे रोजाना कहा करते थे कि तुम सत्संगमें चलो । परन्तु मेरेको अच्छा नहीं लगता था । जब उन्होंने कई बार कह दिया, तब सोचा कि ये कहते हैं तो चलो ! वे सत्संगमें गये । केवल इस लिहाजसे गये कि ये मालिक हैं और बार-बार कहते हैं तो सत्संगमें चलो । काम खोटी होगा तो इनका होगा ! वे सत्संगमें गये तो उनका मन लग गया और वे रोजाना जाने लग गये । ऐसे ही हरेकको प्यारसे, स्नेहसे सत्संगमें लगाओ । भीतरमें यह भाव रखो कि सबका कल्याण हो जाय ! सबका उद्धार हो जाय ! सबकी मुक्ति हो जाय !
पाप करनेवाले, अन्याय करनेवाले, खराब रास्ते जानेवाले भी अपनेको दीखें तो समझना चाहिये कि ये भगवान्के प्यारे हैं । भगवान्ने ‘सब मम प्रिय’ कहा है, यह नहीं कहा कि ‘भक्त मम प्रिय’ ! उन्होंने मात्र जीवको अपना प्यारा बताया है । अत: जो पाप, अन्याय करते हैं, वे भी भगवान्के प्यारे हैं, पर भगवान्के लाड़में बिगड़े हुए हैं । ज्यादा लाड़ करनेसे बच्चा बिगड़ जाता है ! इसलिये उनपर दया करो और उनको भगवान्में लगाओ, भगवान्के सम्मुख करो । कोई रोगी है, पर हमारेमें उसको नीरोग करनेकी योग्यता नहीं है तो उसको वहाँ ले जाओ, जहाँ मुफ्तमें दवाई मिलती हो । ऐसे ही जो पाप करनेमें लगे हुए हैं, उनको अच्छी बातें सुनाओ, पुस्तकें दो । यह नहीं कर सको तो उनको सत्संगमें ले जाओ । सत्संग एक औषधालय है । यहाँ आनेपर कोई-न-कोई दवा लागू पड़ जायगी ।
हमारेको कलकत्तेमें एक सज्जन मिले । उन्होंने एक बहुत बढ़िया बात बतायी कि मैं भगवान्से कहता हूँ—‘हे नाथ ! सबका पालन तो आपको करना है ही, कहीं-कहीं मेरेको भी मौका दे दो, मेरेको भी निमित्त बना दो । किसीको अन्न दे दें, किसीको वस्त्र दे दें, किसीकी सहायता कर दें, किसीको कुछ दे दें ! करना भी आपको है, देना भी आपको है, पर साथमें थोड़ा-सा मेरेको भी निमित्त बना दो ।’ इस तरह आप भी भगवान्से कहो कि हे नाथ ! आप सभीका पालन-पोषण करते हैं और सभी आपके प्यारे हैं, इतनी कृपा और करो कि कहीं-न-कहीं मेरेको भी निमित्त बना दो । किसी तरहसे मैं भी लोगोंके हितमें निमित्त बन जाऊँ । ऐसे भगवान्को कहो और अपनी तरफसे ऐसा भाव रखो कि सब भगवान्के भक्त बन जायँ !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे
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