।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.–२०७१, गुरुवार
भगवत्प्राप्तिका सुगम
तथा शीघ्र सिद्धिदायक साधन


(गत ब्लॉगसे आगेका)
वे एक ही परमात्मा अनेक रूपोंसे प्रकट हुए हैं । उनके रूप असंख्य हैं‒‘अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभ विष्णवे ।’ चौरासी लाख योनियों हैं और एक-एक योनिमें करोड़ों- अरबों जीव हैंपर सब-के-सब एक परमात्मा ही हैं । इस बातको मान लें और जहाँतक बनेकभी भूलकर भी शरीरसे किसीके अहितका बर्ताव न करेंमनसे किसीके अहितका चिन्तन न करेंवाणीसे कड़वी बात कहकर किसीको दुःख न दें । इस विषयमें सावधान रहें । कभी चूक हो जाय तो चरणोंमें गिरकर माफी माँग लें । भूल हो जाय तो फिर उसको सुधार लें । एक मारवाड़ी कहावत है‒‘पड़ पड़ कर सवार होवे’ अर्थात् घोड़े, साइकिल आदिपर चढ़ते ही मनुष्य पूरा सवार नहीं हो जाताप्रत्युत कई बार पड़कर (गिरकर) ही सवार बनता है । इसी तरह कोई भूल हो जाय तो आगे सावधान हो जायँ ।

एक कहानी है । एक सिंहने श्रृगाली (सियारी) के बच्चेको अकेला देखा तो दयावश होकर उसको उठा ले आया और सिंहनीको दे दिया । सिंहनीके दो पुत्र थे । उसने श्रृगालीके बच्चेको अपना तीसरा पुत्र मान लिया और उसका पालन-पोषण करने लगी । वे तीनों बच्चे एक साथ खेलते थे और सिंहनीका दूध पीते थे । जब वे थोड़े बड़े हुए तब शिकारके लिये इधर-उधर घूमने लगे । एक दिन उस जंगलमें एक हाथी आया । उसको देखकर श्रृगालीका बच्चा डरकर घरकी तरफ भागा तो यह देखकर सिंहनीके दोनों बच्चे भी हतोत्साहित होकर घर चले आये और अपनी माँसे बड़े भाई (श्रृगालीके बच्चे) की बात सुनायी कि किस तरह वह हाथीको देखकर भाग आया । श्रृगालीका बच्चा उनकी उपहासपूर्ण बात सुनकर गुस्सेमें भर गया और बोला कि क्या मैं इन दोनोंसे किसी बातमें कम हूँ, जो ये मेरा उपहास कर रहे हैं उसका गुस्सा देखकर सिंहनी हँसी और बोली‒
शूरोऽसि कृतविद्योऽसि दर्शनीयोऽसि पुत्रक ।
यस्मिन्कुले त्वमुत्पन्नो   गजस्तत्र न हन्यते ॥
                                                                        (पञ्चतन्त्र ६लब्ध ४४)
‘हे पुत्र ! तू शूरवीर हैशिकार करनेकी विद्या भी जान गया है और सुन्दर भी बहुत हैपरन्तु जिस कुलमें तू पैदा हुआ हैउसमें हाथीको मारनेकी रीति नहीं है ।’

इसी तरह परमात्माको प्राप्त करनेकी रीति मनुष्य योनिमें ही हैअन्य योनियोंमें नहीं । गायका शरीर मनुष्यशरीरसे भी अधिक पवित्र हैयहाँतक कि उसके गोबर-गोमूत्र भी पवित्र हैं और उसके खुरोंसे उड़ी धूल (गोधूलि) भी पवित्र है* । पर गायोंमें परमात्मप्राप्तिकी रीतियोग्यता नहीं हैयह रीतियोग्यता मनुष्योंमें ही है । परमात्मप्राप्तिके लिये कोई भी मनुष्य अनधिकारी नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सब जग ईश्वररूप है’ पुस्तकसे
___________________
   *धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमंगल मूल । (मानसबाल ३१२)