।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशीवि.सं.२०७१सोमवार
व्रत-पूर्णिमा
दस नामापराध


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
यह महिमा किस बातकी है यह सब भगवान्‌को,भगवान्‌के नामको लेकर है । आज भी हम गोस्वामीजीकी महिमा गाते हैंरामायणजीकी महिमा गाते हैंतो क्या है भगवान्‌का चरित्र हैभगवान्‌का नाम है । गोस्वामीजी महाराज भी कहते हैं‒‘एहि महँ रघुयति नाम उदारा ।’ इसमें भगवान्‌का नाम है जो कि वेदपुराणका सार है । इस कारण रामायणकी इतनी महिमा है । भगवान्‌की महिमा,भगवान्‌के चरित्रभगवान्‌के गुण होनेसे रामायणकी महिमा है । जिसका भगवान्‌से सम्बन्ध जुड़ जाता हैवह विलक्षण हो जाता है । गंगाजी सबसे श्रेष्ठ क्यों हैं भगवान्‌के चरणोंका जल है । भगवान्‌के साथ सम्बन्ध है । इस वास्ते भगवान्‌के नामकी महिमामें अर्थवादकी कल्पना करना गलत है ।

‘नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ’(८) निषिद्ध आचरण करना और (१) विहित कर्मोंका त्याग कर देना । जैसेहम नाम-जप करते हैं तो झूठ-कपट कर लिया,दूसरोंको धोखा दे दियाचोरी कर लीदूसरोंका हक मार लिया तो इसमें क्या पाप लगेगा । अगर लग भी जाय तो नामके सामने सब खत्म हो जायगाक्योंकि नाममें पापोंके नाश करनेकी अपार शक्ति है‒इस भावसे नामके सहारे निषिद्ध आचरण करना नामापराध है ।

भगवान्‌का नाम लेते हैं । अब संध्याकी क्या जरूरत है गायत्रीकी क्या जरूरत है श्राद्धकी क्या जरूरत है ?तर्पणकी क्या जरूरत है क्या इस बातकी जरूरत है इस प्रकार नामके भरोसे शास्त्र-विधिका त्याग करना भी नाम महाराजका अपराध है । यह नहीं छोड़ना चाहिये । अरे भाई ! यह तो कर देना चाहिये । शास्त्रने आज्ञा दी है । गृहस्थोंके लिये जो बताया हैवह करना चाहिये ।

नाम्नोऽस्ति यावती शक्तिः पापनिर्हरणे हरेः ।
तावत् कर्तुं न शक्नोति  पातकं पातकी जनः ॥

भगवान्‌के नाममें इतने पापोंके नाश करनेकी शक्ति है कि उतने पाप पापी कर नहीं सकता । लोग कहते हैं कि अभी पाप कर लोठगी-धोखेबाजी कर लोपीछे राम-राम कर लेंगे तो नाम उसके पापोंका नाश नहीं करेगा । क्योंकि उसने तो भगवन्नामको पापोंकी वृद्धिमें हेतु बनाया है । भगवान्‌के नामके भरोसे पाप किये हैंउसको नाम कैसे दूर करेगा ?

इस विषयमें हमने एक कहानी सुनी है । एक कोई सज्जन थे । उनको अंग्रेजोंसे एक अधिकार मिल गया था कि जिस किसीको फाँसी होती होअगर वहाँ जाकर खड़ा रह जाय तो उसके सामने फाँसी नहीं दी जायगी‒ऐसी उसको छूट दी हुई थी । उसकी लड़की जिसको ब्याही थीवह दामाद उद्दण्ड हो गया । चोरी भी करेडाका भी डाले,अन्याय भी करे । उसकी स्त्रीने मना किया तो वह कहता है क्या बात है तेरा बापअपनी बेटीको विधवा होने देगा क्या उसका जवाँई हूँ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे