।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
भाद्रपद पूर्णिमावि.सं.२०७१मंगलवार
पूर्णिमा, महालयारम्भ, प्रतिपदा-श्राद्ध
दस नामापराध


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
उस लड़कीने अपने पिताजीसे कह दिया‒ ‘पिताजी ! आपके जवाँई तो आजकल उद्दण्ड हो गये हैं कहना मानते हैं नहीं । ससुरने बुलाकर कहा कि ऐसा मत करोतो कहने लगा‒‘जब आप हमारे ससुर हैंतो मेरेको किस बातका भय है ।’ ऐसा होते-होते एक बार उसका जवाँई किसी अपराधमें पकड़ा गया और उसे फाँसीकी सजा हो गयी । जब लडकीको पता लगा तो उसने आकर कहा‒पिताजी ! मैं विधवा हो जाऊँगी । पिताजी कहते हैं‒बेटी ! तू आज नहीं तो कल, एक दिन विधवा हो जायगी । उसकी रक्षा मैं कहाँतक करूँ । मेरेको अधिकार मिला हैवह दुरुपयोग करनेके लिये नहीं है । बेटीके मोहमें आकर पापका अनुमोदन करूँपापकी वृद्धि करूँ । यह बात नहीं होगी । वे नहीं गये ।

ऐसे ही नाम महाराजके भरोसे कोई पाप करेगा तो नाम-महाराज वहाँ नहीं जायँगे । उसका वज्रलेप पाप होगा,बड़ा भयंकर पाप होगा ।

‘धर्मान्तरैः साम्यम्’ (१०) भगवान्‌के नामकी अन्य धर्मोंके साथ तुलना करना अर्थात् गंगास्नान करोचाहे नाम-जप करो । नाम-जप करोचाहे गोदान कर दो । सब बराबर है । ऐसे किसीके बराबर नामकी बात कह दो तो नामका अपराध हो जायगा । नाम महाराज तो अकेला ही है । इसके समान दूसरा कोई साधनधर्म है ही नहीं । भगवान् शंकरका नाम लो चाहे भगवान् विष्णुका नाम लो । ये नाम दूसरोंके समान नाम नहीं हैं । नामकी महिमा सबमें अधिक हैसबसे श्रेष्ठ है ।

इस प्रकार इन दस अपराधोंसे रहित होकर नाम लिया जाय तो वह बड़ी जल्दी उन्नति करनेवाला होता है । अगर नाम जपनेवालेसे इन अपराधोमेंसे कभी कोई अपराध बन भी जाय तो उसके लिये दूसरा प्रायश्चित्त करनेकी जरूरत नहीं है उसको तो ज्यादा नाम-जप ही करना चाहियेक्योंकि नामापराधको दूर करनेवाला दूसरा प्रायश्चित्त है ही नहीं ।

नाम महाराजकी तो बहुत विलक्षणअलौकिक महिमा हैजिस महिमाको स्वयं भगवान् भी कह नहीं सकते । इस वास्ते जो केवल नामनिष्ठ हैजो रात-दिन नाम-जपके ही परायण हैजिनका सम्पूर्ण जीवन नाम-जपमें ही लगा है;नाम महाराजके प्रभावसे उनके लिये इन अपराधोंमेंसे कोई भी अपराध लागू नहीं होता । ऐसे बहुत-से सन्त हुए हैंजो शास्त्रोंपुराणोंस्मृतियों आदिको नहीं जानते थेपरन्तु नाम महाराजके प्रभावसे उन्होंने वेदोंपुराणों आदिके सिद्धान्त अपनी साधारण ग्रामीण भाषामें लिख लिये हैं । इस वास्ते सच्चे हृदयसे नाममें लग जाओ भाईक्योंकि यह कलियुगका मौका है । बड़ा सुन्दर अवसर मिल गया है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे