।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७१, सोमवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

जो माँ-बापका भक्त होता है, उसपर भगवान्‌ राजी हो जाते हैं । ‘राम’ नामसे भगवान्‌ मिल जायँ, दर्शन दे दें । लोकमें, परलोकमें सब जगह ही वह निर्वाह करनेवाला है । लोकमें जो चाहिये, वह देनेवाला चिन्तामणि है और परलोकमें भगवद्दर्शन करानेवाला है । कई ऐसे आदमी देखे हैं, जो दिनभर माँगते रहते हैं, धूमते-फिरते रहते हैं; परन्तु उनका पेट नहीं भरता । ऐसी दशामें वे भी अगर एकान्तमें ‘राम’-‘राम’ करने लग जायँ तो प्रत्यक्षमें उनके भी ठाट लग जायगा । अन्न, जल, कपड़े आदि किसी चीजकी कमी रहेगी नहीं । अब नाम-जप करते ही नहीं तो उसका क्या किया जाय ? नाम-जप करके देखा जाय तो भाग्य खुल जाता है, विलक्षण बात हो जाती है । जीते-जी भाग्यमें विशेष परिवर्तन भगवन्नामसे होता है, इसमें कोई सन्देहकी बात नहीं है । साधारण आदमी भी नाम-जपमें लग जाता है तो लोगोंपर विशेष असर पड़ता है ।


भजन करे पतालामें परगट होत अकास ।
दाबी दूबी नहि  दबे  कस्तूरी  की  बास ॥

कस्तूरीको सौगन्ध दिला दें कि तुम सुगन्धि मत फैलाओ तो क्या वह रुक जायगी ? सुगन्धि तो फैल ही जायगी । इस तरहसे कोई चुपचाप भी भजन करे और किसीको पता ही न लगने दे तो भी महाराज यह तो प्रकट हो ही जाता है । उसकी विलक्षणता, अलौकिकता दीखने लगती है । लोगोंपर असर पड़ने लगता है; क्योंकि भगवान्‌का नाम है ही ऐसा विलक्षण । इसलिये लोक और परलोक दोनोंमें लाभ होता है । साधारण घरका बालक साधु होकर भजनमें तत्परतासे लग जाता है तो वह सन्त-महात्मा कहलाने लगता है । बड़े चमत्कार उसके द्वारा हो जाते हैं, जिसको पहले कोई पूछता ही नहीं था । बात क्या है ? यह सब भगवन्नामकी महिमा है ।

बरनत बरन प्रीती बिलगाती ।
ब्रह्म जिव सम सहज संधाती ॥
                                 (मानस, बालकाण्ड, २० । ४)

इन ‘र’, ‘आ’ और ‘म्’ का वर्णन किया जाय तो ये अलग-अलग दीखते हैं । मानो ये तीनों वर्ण कृशानु, भानु और हिमकरके बीज-अक्षर हैं । वृक्षमें बीजसे ही शक्ति आती है । इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमामें जो शक्ति है, वह ‘राम’ नामसे ही आयी है ।

यदादित्यगतं  तेजो  जगद्‍  भासयतेखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥
                                               (गीता १५ । १२)

गीतामें भगवान्‌ कहते हैं कि इनमें जो विशेषता है, वह मेरी ही है । नाम और नामीमें अभेद है । इनके उच्चारण, अर्थ और फलमें भिन्नता दीखती है; परन्तु ‘र’ और ‘म’ दोनों ब्रह्म और जीवके समान सहज संघाती हैं अर्थात्‌ स्वतः सदा एक साथ रहनेवाले साथी हैं, सदा एकरूप और एकरस रहनेवाले हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे