Nov
26
(गत ब्लॉगसे आगेका)
बिना बिचारे जो करे सो पाछे पचछताय,
काज बिगारे आपना जगमें
होत हँसाय ।
जगमें होत हँसाय चित्तमें
चैन न पावे,
राग रंग सन्मान ताहिके मन
नहिं भावे ।
कह गिरधर कविराय करम गति टरे न टारे,
खटकत है हिय माँहि करे जो बिना बिचारे ॥
बिना विचार किये काम करनेसे आगे दुःख पाना पड़ता है और वह बात
हृदयमें भी खटकती रहती है । मनुष्य अपने स्वार्थ और अभिमानका त्याग कर दे और दूसरोंके
हितके लिये काम करे तो उसका जीवन सफल हो जाय । सात्त्विक वृत्तियोंकी मुख्यता रखकर
अर्थात् विचारपूर्वक प्रत्येक कार्य करना चाहिये । लोग भोजन
करते हैं तो दुःख, शोक और रोग देनेवाले राजसी भोजनमें प्रवृत्त होते हैं । जान-बूझकर
कुपथ्य कर लेते हैं । छोटे-से जीभके टुकड़ेके वशमें होकर साढ़े तीन हाथके शरीरका नुकसान
कर लेते हैं । अगर विवेक होता तो शरीरका नाश क्यों कर लेते ? इतना ही नहीं, अभक्ष्य-भक्षण करके नरकोंकी तैयारी कर लेते हैं ।
‘राम’ नामकी महिमा कहते हुए गोस्वामीजी कहते हैं‒‘सुगति’ रूपी जो सुधा है, यह सदाके लिये तृप्त करनेवाली है । सदाके लिये लाभ हो जाय, जिस लाभके बादमें कोई लाभ बाकी नहीं रहता, जहाँ कोई दुःख पहुँच ही नहीं सकता है । ऐसे महान् आनन्दको प्राप्त करानेवाली जो
श्रेष्ठ गति है, उसका रस ‘राम’ नामका जप करनेसे आता है । जो ‘राम’ नामसे तृप्त हो जाते हैं, वे फिर सांसारिक भोगोंमें फँसेंगे
नहीं । उनसे कहना नहीं पड़ेगा कि पाप-अन्याय मत करो । उनकी पाप-अन्यायमें रुचि रहेगी
ही नहीं । जिनको भगवन्नामका रस नहीं मिला है, वे धन इकट्ठा करने और भोग-भोगनेमें लगे हैं ।
सज्जनो ! माताओ-बहनो ! भगवान्के नाममें रस लो, इसमें तल्लीन हो जाओ । रात-दिन इसमें लग जाओ । आप-से-आप पाप-अन्याय छूट जायगा ।
निषिद्ध आचरणोंसे स्वतः ही ग्लानि हो जायगी । अभी मलिनता अच्छी लगती है, बुरी नहीं लगती, कारण क्या है ? अन्तःकरण मैला है । जो खुद
मैला है, उसे मैली चीज ही अच्छी लगेगी । मक्खियाँ मिठाईपर तभीतक बैठी
रहती हैं कि जबतक मैलेकी टोकरी पाससे होकर न निकले । मुँहपर मक्खियाँ बैठने लगें तो
बढ़िया सुगन्धवाला इत्र थोड़ा-सा लगा लो फिर मक्खियाँ नहीं आयेंगी; क्योंकि उनको सुगन्धि सुहाती ही नहीं । ‘मक्षिका व्रणमिच्छन्ति’‒वे तो घावपर जहाँ पीप-खून मिले, वहाँ बैठेंगी । ऐसे ही जिसका मन अशुद्ध होता है, वह ही मलिन वस्तुओंकी तरफ आकृष्ट होता है । भगवान्के नाम-रूपी सुगन्धके मिलनेपर
फिर मैली वस्तुओंकी तरफ मन नहीं जायगा ।
सज्जनो ! यह बड़ा सुगम उपाय है । भगवान्के नामका
जप करो और प्रभुके चरणोंका सहारा रखो । जैसे साधारण मनुष्य धन कमाने और भोग-भोगनेमें
रस लेते हैं, वैसे ही भगवत्प्रेमीको भगवन्नाम, सत्संग और सत्-शास्त्रोंके अध्ययनमें रस लेना चाहिये । इस रसके
लिये ही मानव जीवन मिला है जिसे ‘राम’ नाम लेनेमें रस आने लगेगा, वह रात-दिन नाम-जपमें लग जायगा, फिर वह संसारके विषयोंमें फंसेगा ही कैसे ?
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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