।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७१, रविवार

मानसमें नाम-वन्दना


                  
                   
               
 (गत ब्लॉगसे आगेका)

हमें भगवान्‌की तरफ ही चलना है । मनुष्य-शरीर मिला है इसलिये उद्धार करना है । हृदयमें सच्चा प्रेम भगवान्‌से हो, सांसारिक पदार्थोंसे, भोगोंसे न हो । संतोंने कहा है‒

नर तन दीनो रामजी,  सतगुरु  दीनो  ज्ञान,
ए  घोड़ा  हाँको  अब,  ओ  आयो   मैदान ।
ओ  आयो  मैदान  बाग  करड़ी  कर  सावो,
हृदय  राखो  ध्यान  नाम  रसनासे  गावो ।
कुण  देख  सगराम  कहे  आगे  काढ़े  कान,
नर तन दीनो रामजी, सतगुरु दीनो ज्ञान ॥
कह  दास  सगराम  बरगड़े  घालो  घोड़ा,
भजन करो भरपूर रह्या दिन बाकी थोड़ा ।
थोड़ा  दिन  बाकी  रह्या  कद  पहुँचोला  ठेट,
अब बिचमें बासो बसो तो पड़सो किणरे पेट ।
पड़सो   किणरे   पेट   पड़ेला   भारी   फोड़ा,
कहे   दास   सगराम   बरगड़े  बालो  घोड़ा ॥

ऐसा बढ़िया मौका आ गया है । कितना सीधा, सरल रास्ता संतोंने बता दिया ! ‘संतदास सीधो दड़ो सतगुरु दियो बताय ।’ ‘धावन्निमिल्य वा नेत्रे न स्खलेन्नपतेदिह ।’ इस मार्गमें मनुष्य न स्खलित होता है, न गिरता है, न पड़ता है‒ऐसा सीधा और सरल रास्ता है । संतोंने कृपा करके बता दिया । हर कोई ऐसी गुप्त बात बताते नहीं हैं‒

राम नामकी संतदास दो अन्तर धक धूण ।
या  तो  गुपती  बात  है कहो बतावे कूण ॥

तुलसीदासजी कहते हैं‒कमठ सेष सम धर बसुधा के’‒‘राम’ नामके दो अक्षर र’ और म’ शेषनाग और कमठके समान हैं । जैसे पृथ्वीको धारण करनेवाले शेष और कमठ हैं, ऐसे यह जोराम’ नाम है इसमेंर’ शेषनाग है (र’ का आकार भी ऐसा ही होता है) और म’ कमठ (कछुआ) है । संसारमात्रको धारण करनेमें रामजी महाराज कमठ और शेषके समान हैं । अपने भक्तको धारण करनेमें उनके कौन बड़ी बात है !

सरवर  पर  गिरवर  तरे,  ज्यूँ तरवरके पात ।
जन रामा नर देहको तरिबो किती एक बात ॥

भगवान्‌के नामसे समुद्रके ऊपर पत्थर तैर गये तो मनुष्यका उद्धार हो जाय‒इसमें क्या बड़ी बात है ! भगवान्‌ने उद्धार करनेके लिये ही इसको मनुष्य-शरीर दिया । भगवान्‌ने भरोसा किया कि यह अपना उद्धार करेगा । सज्जनो ! मुफ्तमें बात मिली हुई है । भगवान्‌ने जब विचार किया कि यह उद्धार करे तो भगवान्‌की कृपा एवं उनका संकल्प हमारे साथ है । पतनमें हमारा अपना हाथ है, उसमें भगवान्‌का हाथ नहीं है । उनका संकल्प हमारे उद्धारका है, कितनी भारी मदद है ! सब संत, ग्रन्थ, धर्म, सद्‌गुरु, सत्-शास्त्र हमारे साथ हैं । ऐसा भगवान्‌का नाम है । केवल हम थोड़ी-सी हाँ-में-हाँ मिला दें । आगे गोस्वामीजी कहते हैं‒

जन मन मंजु  कंज  मधुकर से ।
जीह जसोमति हरि हलधर से ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २० । ८)
   
   (अपूर्ण)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे