।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७१, शनिवार

मानसमें नाम-वन्दना


                  
                   
               
 (गत ब्लॉगसे आगेका)

कलिसंतरणोपनिषद्‌में नाम-महिमा आयी है । एक बार नारदजी ब्रह्माजीके पास गये । ब्रह्माजीने पूछा‒‘कैसे आये हो ?’ नारदजीने कहा‒पृथ्वीमण्डलपर अभी कलियुग आया हुआ है । इस कलियुगमें जीवोका उद्धार सुगमतापूर्वक कैसे हो ?’ ब्रह्माजीने कहा‒कलियुगके पापोंको दूर करनेके लिये यह महामन्त्र है‒हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥’ इति षोडशकं कल्मषनाशनम् भगवन्नाम ही इस कलियुगमें सुगम साधन है ।

फिर नारदजीने पूछा‒कोऽस्ति विधिरिति सहोवाच प्रजापतिः’ भगवन्नाम लेनेकी विधि क्या है ? तो ब्रह्माजीने उत्तर दिया‒नास्ति विधिः ।’ कोई कैसा ही हो । पापी हो या पुण्यात्मा वह नाम जपता हुआ सायुज्य, सालोक्य आदि मुक्तियोंको प्राप्त कर लेता है । इसलिये नाम लिये जाओ बस । कलियुगी जीवोंके लिये कितनी सुगम बात बता दी ! अगर विधियाँ बता देते तो मुश्किल हो जाती । नाम-जपमें निषेध कुछ है ही नहीं । सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू सबके लिये सुलभ है । सुलभं भगवन्नाम वागस्ति वशवर्तिनी’ । भगवान्‌का नाम सुलभ है, इसपर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया है । वर्तमान सरकारने भी कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया है, आगे खतरा हो सकता है, परंतु अभी कोई प्रतिबन्ध नहीं है । खुला नाम लो भले ही, कोई मना नहीं है ।

राम दड़ी चौड़े पड़ी, सब कोई खेलो आय ।
दावा नाहीं सन्तदास, जीते  सो  ले जाय ॥

किसीका दावा नहीं है । सब कोई भगवान्‌का नाम ले सकते हैं । जैसे बापकी जगहपर बेटेका हक लगता है, वैसे भगवन्नामपर हमारा पूरा-का-पूरा हक लगता है; क्योंकि यह हमारे बापका नाम है । ऐसा अपनेको अधिकार मिला हुआ है । कितनी मौजकी बात है, कितने आनन्दकी बात है यह ! मनुष्य-शरीर मिल गया और फिर इसमें भगवान्‌का नाम मिल गया ।

हाथ काम मुख राम है,  हिरदे  साँची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की, याही उत्तम रीत ॥

हाथोंसे अपना काम करते हुए मुँहसे राम’ नाम जप करते रहें । बहनें-माताएँ घरका काम करें । भाई लोग खेतोंमें या दूकानोंमें काम करें । वे जहाँ हो, वहाँ ही रहकर काम करते रहे । हृदयमें भगवान्‌से स्नेह बना रहे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे