(गत ब्लॉगसे आगेका)
ऐसे उन भगवान्का नाम ‘राम’ है और वे स्वयं नामी कहलाते हैं । दशरथके घर अवतार लेनेवाले
भगवान्का नाम भी ‘राम’ है और ‘रमन्ते योगिनोऽनन्ते सत्यानन्दे चिदात्मनीति रामपदेनासौ
परब्रह्माभिधीयते’ ‒जो निर्गुण-निराकार
रूपसे सब जगह रम रहा है, उस परमात्माका नाम भी ‘राम’ है । ‘राम’ नाम सगुण और निर्गुण दोनोंका है । यह वर्णन आगे आयेगा । यहाँ
तो सामान्य रीतिसे नाम और नामीकी बात गोस्वामीजी महाराज कहते हैं । भगवान्के नाममें
रात-दिन लग जाय तो रघुनाथजी महाराजको आना पड़ता है । जैसे,
बच्चा अपनी माँको पुकारे तो उसकी माँ बैठी नहीं रह सकती । उसको
भागकर बच्चेको गोदमें लेना पड़ता है ।
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २८ । १)
सादर सुमिरन जे नर करहीं ।
भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा ११९ । ४)
किसी तरहसे नाम लिया जाय,
वह फायदा करेगा ही । पर जो आदरके सहित नाम लेता है;
गहरी रीतिसे, भीतरके भावसे, प्रेमसे नाम लेता है उसका भगवान्पर विशेष असर पड़ता है । जैसे,
गीली मिट्टीमें गौका पैर रखा हुआ हो और उसमें जल भरा हो तो उसको
पार करनेमें क्या जोर आता है ? इधर-से-उधर पैर रखा और पार हुए । भगवन्नामका
आदरसहित जप करनेवाला गो-पदकी तरह संसार-समुद्रको तर जाता है ।
नाम रूप दुइ ईस उपाधी ।
अकथ अनादि सुसामुझि साधी ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २१ । २)
‘नाम और रूप‒दोनों ईश्वरकी उपाधि हैं;
भगवान्के नाम और रूप‒दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं । सुन्दर (शुद्ध भक्तियुक्त) बुद्धिसे ही इनका दिव्य अविनाशी स्वरूप
जाननेमें आता है ।’ भगवान्का स्वरूप और भगवान्का नाम‒ये दोनों उनकी उपाधियाँ हैं
। नामका चिन्तन करो चाहे स्वरूप-चिन्तन करो,
दोनों ही भगवान्को खींचनेवाले हैं । योगदर्शनमें भी आया है‒‘क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः’
‒ऐसे ईश्वरके लक्षण बताये ।
‘तस्य वाचकः प्रणवः’
और ‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’‒उसके नामका जप करना और उसके स्वरूपका स्मरण-चिन्तन करना । भगवान्के
नामका जप करनेवालेको स्वाभाविक ही भगवान् प्यारे लगते हैं । क्यों प्यारे लगते हैं
? प्रभु हमारे हैं इसलिये प्यारे लगते हैं । उनके नामका जप और उनके स्वरूपका स्मरण
करना चाहिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |