।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७१, शनिवार
मानसमें नाम-वन्दना

                   
                 

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

अकथ अनादि सुसामुझि साधी’‒भगवान् और भगवान्‌के नामकी महिमा कोई कह नहीं सकता । ये दोनों अनिर्वचनीय हैं, इस कारण कोई इनका कथन नहीं कर सकता । रामु न सकहिं नाम गुन गाई’‒रामजी खुद भी अपने नामकी महिमा नहीं गा सकते, फिर दूसरा क्या कह सकता है ? नामकी महिमा कबसे चली, कबसे आरम्भ हुई ? तो कहते हैं भगवान्‌का नाम और नामकी महिमा सदासे है । जैसे भगवान् अनादि हैं, ऐसे उनके नामकी महिमा भी अनादि है । श्रेष्ठ बुद्धिसे अच्छी तरह समझकर उनकी सिद्धि की जाती है । भगवान्‌को और उनके नामकों गहरा उतरकर समझना चाहिये । गहरा उतरना क्या है ? जैसे, भोजन कैसा है ? उसका भोजन करनेसे पता लगता है । ऐसे ही नाम-जपमें गहरा उतरकर ठीक तरहसे लग जायँ, तब इसका पता लगता है कि इसमें कितना रस भरा हुआ है ! श्रेष्ठ बुद्धिके बिना इसमें प्रवेश सम्भव नहीं है ।

मलिन बुद्धिवालेका भगवान्‌में प्रेम नहीं होता । उसे भगवान्‌के नाममें रस नहीं आता । जब नाममें रुचि न हो, अच्छा न लगे तो समझना चाहिये कि भीतरमें कोई गड़बड़ी है । जैसे, जिस व्यक्तिको पित्तका बुखार हो, उसे मिश्री कड़वी लगती है तो क्या उपाय करें ? उसको मिश्री-ही-मिश्री खिलाओ । खाते-खाते जब पित्त शान्त हो जायगा फिर मिश्री मीठी लगने लग जायगी । ऐसे ही भगवान्‌का नाम मीठा न लगे तो भी लिये जाओ । नामरूपी मिश्रीमें ऐसी शक्ति है कि मिठास पैदा हो जायेगा । जहाँ पित्त शान्त हुआ कि मिठास आया । भगवान्‌का नाम किसी तरह लिये ही जाओ । फिर देखो, कितना विलक्षण आनन्द आता है ।

देखो भाई ! यह समय पूरा हो जायगा ऐसे ही । अगर भजन करना हो तो जल्दी कर लो । उमरका समय पूरा होनेके बाद फिर कोई वश नहीं चलेगा । जबतक यह श्वासरूपी धौंकनी चलती है, तभीतक ही भजन करके लाभ ले लो । ये श्वास पूरे हो जायेंगे फिर हाथमें कुछ भी नहीं रहेगा ।

नाम और रूपकी तुलना

पिछली दो चौपाइयोंमें नाम और नामीकी महिमा बतायी गयी और दोनोंको ही श्रेष्ठ, अकथनीय और अनादि बताया । दोनोंमें गहरे उतरनेसे ही पता लगता है । अच्छी समझ होनेसे दोनोंमें हमारी प्रीति हो सकती है । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कह रहे हैं‒

को  बड़  छोट  कहत  अपराधू ।
सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । ३)
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे