।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७१, रविवार
श्राद्धकी अमावस्या
मानसमें नाम-वन्दना

                   
               

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

इन नाम और रूपमें कौन बड़ा है, कौन छोटा है, यह कहना अपराध है । इनके गुणोंका तारतम्य सुनकर साधु पुरुष खुद ही समझ जायेंगे कि वास्तवमें बड़ा कौन है । इसलिये हम इन दोनोंके गुण-भेद बता देंगे, पर छोटा-बड़ा नहीं कहेंगे ! गोस्वामीजी महाराज यहाँ ऐसी बात कहते हैं; परंतु आगे उनसे कहे बिना रहा नहीं गया ।

निर्गुण-स्वरूपका वर्णन करते समय उपक्रममें मोरें मत बड़ नामु दुह तें’ मेरी सम्मतिमें नाम इन दोनोंसे बड़ा है‒ऐसा कहते हैं और निर्गुणकी बातका उपसंहार करते हुए निर्गुणस्वरूपके लिये अलगसे कहते हैं कि निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार’ अर्थात् अभी ऊपर प्रकरणमें जिसका वर्णन किया, उस निर्गुणसे नामका प्रभाव बड़ा है । फिर सगुणका वर्णन करते हुए उपक्रममें कहउँ नामु बड़ राम तें’ अब अपने विचारके अनुसार कहता हूँ कि सगुण भगवान् रामसे भी नाम बड़ा है । इसे सिद्ध करनेके लिये पूरी रामायणमें रामजीने क्या-क्या किया और नाम महाराजने क्या-क्या किया, ऐसे वर्णन करके उपसंहारमें फिर निर्गुण और सगुण दोनोंसे नामको बडा बताते हैं । ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि’ इस प्रकार नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम, दोनोंसे बड़ा है । ऐसे पहले उपक्रममें दोनोंसे नामको बड़ा बताया और फिर उपसंहारमें भी दोनोंसे नामको बड़ा बताया । बीचमें भी निर्गुणका उपसंहार करते हुए निर्गुणसे बड़ा कहा और सगुणका उपक्रम करते हुए सगुणसे बड़ा कहा । ऐसे बीचमें अलग-अलग एक-एकसे नामको बड़ा बताया । इस प्रकार पूरे प्रकरणमें यही बात चार बार कह दी कि नाम इन दोनोंसे बड़ा है ।

यहाँ जो कहा कि को बड़ छोट कहत अपराधू’ इसका अर्थ यह हुआ कि छोट कहत अपराधू’ किसीको किसीसे छोटा बतानेमें अपराध लगता है, पर बड़ा कहनेमें अपराध नहीं लगता है । इसलिये गोस्वामीजी महाराजने नामको चार बार बड़ा कहा, पर किसीको छोटा कभी नहीं कहा है । अब आगे गोस्वामीजी कहते हैं‒

देखिअहिं रूप  नाम  आधीना ।
रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । ४)

भगवान् अपने नामके अधीन हैं, नामके बिना भगवान्‌के स्वरूपका ज्ञान नहीं हो सकता । भगवान् जब वनमें गये तो लोगोंने पूछा कि ये कौन हैं ? कहोंसे आये हैं ? ऐसे पूछनेपर परिचय देते हैं कि ये रामजी हैं और साथमें ये लक्ष्मणजी हैं । ऐसे उनका नाम बतानेसे ही उनकी पहचान होती है । इसलिये भगवान्‌से भी भगवान्‌का नाम बड़ा है ।

राम ! राम !! राम !!!
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे