।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष अमावस्या, वि.सं.२०७१, सोमवार
सोमवती अमावस्या
मानसमें नाम-वन्दना

                 
                 
 
               

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रवचन- ६

रूप  बिसेष  नाम  बिनु  जानें ।
करतल गत न परहिं पहिचानें ॥
सुमिरिअ  नाम  रूप बिनु देखें ।
आवत  हृदयँ   सनेह    बिसेषें ॥
                         (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । ५-६)
गोस्वामीजी महाराज आगे कहते हैं कि कोई भी वस्तु हथेलीपर रखी होनेपर भी पहचाननेमें नहीं आती, जबतक उसका नाम न जान लिया जाय और रूपके बिना देखे ही नामका स्मरण किया जाय तो उस रूपके प्रति हृदयमें विशेष प्रेम आ जाता है ।

बिना नामके जाने अनजान वस्तुको हाथमें ले भी लें तो उसका पता नहीं लगता । नामके जाने बिना वस्तुकी पहचान नहीं होती । ऐसे इन दोनोंमें (रूप और नाममें) अन्वय-व्यतिरेकसे पता लगेगा कि बड़ा-छोटा कौन है । सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें’ रूप देखे बिना ही केवल नामका स्मरण किया जाय तो भी हृदयमें भगवान् आ जायेंगे । इस प्रकार नाम लेनेसे रूप महाराज तो पधार ही जायेंगे, पर नाम महाराज बिना रूप महाराजके सामने रहते हुए भी उनकी पहचान नहीं होगी । आवत हृदयँ सनेह बिसेषें’ विशेष स्नेहके साथ नामका स्मरण करनेसे हृदयमें भगवान् आ जाते हैं ।

हरि व्यापक सर्बत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥
                          (मानस, बालकाण्ड, दोहा १८५ । ५)

जैसे पत्थर रगड़नेसे अग्नि प्रकट हो जाती है, ऐसे ही हृदयके भावसे, स्नेहसे नाम लिया जाय तो भगवान् हृदयमें ही नहीं, बाहर-भीतर सब जगह प्रकट हो जाते हैं । तुलसीदासजी महाराज आगे बताते हैं‒

राम  नाम  मनिदीप  धरु  जीह  देहरीं द्वार ।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ॥
                                                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१)

रामनाम मणिदीप है । एक दीपक होता है और एक मणिदीप होता है । तेलका दीया दीपक कहलाता है । मणि स्वतः प्रकाश करनेवाली होती है । जो मणिदीप होता है, वह कभी बुझता नहीं । रामनाम क्या है ? तो कहते हैं, यह मणिदीप है । इसे कहाँ रखें ? जीभके ऊपर । वहाँ क्यों ? तो कहते हैं, जैसे दीपकको मकानके दरवाजेके बाहर रख दें, तो भीतर अँधेरा रह जाय और भीतर रख दें तो बाहर अँधेरा रह जाय । तो क्या किया जाय ? दरवाजेकी देहलीपर रख दो । वहाँपर रखनेसे दोनों जगह प्रकाश हो जाता है । परमात्म-बोध हो जाता है और बाहर भगवान्‌के दर्शन हो जाते हैं । हवासे यह मणिदीप नहीं बुझता । हवा कितनी ही जोरसे चले ! शरीरकी देहली क्या है ? जीभ है ।
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे