(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रवचन- ६
रूप बिसेष नाम बिनु जानें
।
करतल गत न परहिं पहिचानें ॥
सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें ।
आवत हृदयँ सनेह बिसेषें ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २१ । ५-६)
गोस्वामीजी महाराज आगे कहते हैं कि कोई भी वस्तु हथेलीपर रखी
होनेपर भी पहचाननेमें नहीं आती, जबतक उसका नाम न जान लिया जाय और रूपके बिना देखे ही नामका स्मरण
किया जाय तो उस रूपके प्रति हृदयमें विशेष प्रेम आ जाता है ।
बिना नामके जाने अनजान वस्तुको हाथमें ले भी लें तो उसका पता
नहीं लगता । नामके जाने बिना वस्तुकी पहचान नहीं होती । ऐसे इन दोनोंमें (रूप और नाममें)
अन्वय-व्यतिरेकसे पता लगेगा कि बड़ा-छोटा कौन है । ‘सुमिरिअ
नाम रूप बिनु देखें’ रूप देखे बिना ही केवल नामका स्मरण किया जाय तो भी हृदयमें भगवान्
आ जायेंगे । इस प्रकार नाम लेनेसे रूप महाराज तो पधार ही जायेंगे,
पर नाम महाराज बिना रूप महाराजके सामने रहते हुए भी उनकी पहचान
नहीं होगी । ‘आवत हृदयँ सनेह बिसेषें’
विशेष स्नेहके साथ नामका स्मरण करनेसे हृदयमें भगवान् आ जाते
हैं ।
हरि व्यापक सर्बत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा १८५ । ५)
जैसे पत्थर रगड़नेसे अग्नि प्रकट हो जाती है,
ऐसे ही हृदयके भावसे,
स्नेहसे नाम लिया जाय तो भगवान् हृदयमें ही नहीं,
बाहर-भीतर सब जगह प्रकट हो जाते हैं । तुलसीदासजी महाराज आगे
बताते हैं‒
राम नाम मनिदीप धरु
जीह देहरीं द्वार ।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २१)
‘राम’ नाम मणिदीप है । एक दीपक होता है और एक मणिदीप होता है । तेलका
दीया दीपक कहलाता है । मणि स्वतः प्रकाश करनेवाली होती है । जो मणिदीप होता है,
वह कभी बुझता नहीं । ‘राम’ नाम क्या है ? तो कहते हैं, यह मणिदीप है । इसे कहाँ रखें ?
जीभके ऊपर । वहाँ क्यों ?
तो कहते हैं, जैसे दीपकको मकानके दरवाजेके बाहर रख दें,
तो भीतर अँधेरा रह जाय और भीतर रख दें तो बाहर अँधेरा रह जाय
। तो क्या किया जाय ? दरवाजेकी देहलीपर रख दो । वहाँपर रखनेसे दोनों जगह प्रकाश हो
जाता है । परमात्म-बोध हो जाता है और बाहर भगवान्के दर्शन हो जाते हैं । हवासे यह
मणिदीप नहीं बुझता । हवा कितनी ही जोरसे चले ! शरीरकी देहली क्या है ? जीभ है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |