।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल द्वितीया, वि.सं.२०७१, मंगलवार
मानसमें नाम-वन्दना

                 
                 
 
               

 (गत ब्लॉगसे आगेका)

एक कविने कहा‒

भारति जुक्त भली विधि भासत देहके गेहके द्वार थली तूँ’ इस जीभको कहा तेरेमें सरस्वती निवास करती है ।’ देहके गेहके द्वार थली तूँ ।’

‘पै जगदीस जपे बिनु सालग नाहक नागनसी निकली तूँ’ जैसे बिलमें कोई नागिन हो‒सर्पिणीकी ज्यों मुखमें बैठी है, पर ना उथली हरि नामको लेन न क्यों रसना बिजली ते जली तूँ’ भगवान्‌का नाम लेनेके लिये उथली नहीं तो तू बिजलीसे क्यों नहीं जल गयी ?

रामगुणावली गाये बिना गुणहीन गँवारन क्यों न गली तूँ’ हे गँवारन जीभ ! यदि तूने राम गुण नहीं गाया, तो तूँ गली क्यों नहीं ? अब नामको साक्षी बनाते हुए कहते हैं‒

नाम  रूप  गति  अकथ कहानी ।
समुझत सुखद न परति बखानी ॥
अगुन सगुन बिच  नाम सुसाखी ।
उभय  प्रबोधक  चतुर  दुभाषी ॥
                                               (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । ७-८)

नाम और रूपकी गतिकी कहानी अकथनीय है । वह समझनेमें सुखदायक है; परंतु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । निर्गुण और सगुणके बीचमें रामनाम सुन्दर साक्षी है और यह दोनोंका यथार्थ ज्ञान करानेवाला चतुर दुभाषिया है । यह नाम महाराज सगुण और निर्गुण दोनोंसे श्रेष्ठ चतुर दुभाषिया है ।

नाममें पाप-नाशकी शक्ति

जब ही नाम हृदय धर्‌यो भयो पाप को नास ।
मानो  चिनगी  आग  की  पड़ी  पुराने  घास ॥

नये घासमें इतनी जल्दी आग नहीं लगती, पुराना घास बहुत जल्दी आगको पकड़ता है । अनेक जन्मोंके, युग-युगान्तरके जितने पुराने पाप पड़े हुए हैं, वे सब तो हैं पुराना घास । उसपर रामनाम रूपी देदीप्यमान अग्नि रख दी जाय तो बेचारे सब पाप नष्ट हो जाते हैं । नामको अगर हृदयमें धारण कर लिया जाय तो अज्ञान सदाके लिये नष्ट हो जाता है । मानो सब जगह प्रकाश हो जाता है ।

सन्तोंकी वाणीमें पढ़ा है कि पापका नाश करनेके लिये नाम महाराजका प्रयोग नहीं करना चाहिये । नाम महाराजसे पापोंके नाशकी कामना नहीं करनी चाहिये; क्योंकि सूर्य भगवान् आ जायँ तो उनसे प्रार्थना नहीं करते कि महाराज ! आप हमारे यहाँ अन्धकारका नाश कर दो, अन्धकारको हटा दो, प्रकाश कर दो, उनसे ऐसे क्या कहना ! सूर्योदयकी तैयारी होते ही अन्धकार बेचारा आप-से-आप भाग जाता है । उदय होनेसे पहले ही वह भाग जाता है । ऐसे नाम महाराजके आनेकी तैयारी हो जाय हृदयमें, तो पाप भाग जाते हैं ।
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे