।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७१, बुधवार
मानसमें नाम-वन्दना

                 
              
 
 (गत ब्लॉगसे आगेका)

सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्र कृतिभिः शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात्

जहाँ भगवान्‌की कथा सुननेका मन किया, नाम जप करें, भजन करें, ऐसी इच्छा हुई कि भगवान् उसके हृदयमें आकर विराजमान हो जाते हैं । रामनाम महाराजकी तरफका विचार हो गया तो उसके आभासमात्रसे पाप नष्ट हो जाते हैं । पापोंमें ताकत नहीं है ठहरनेकी ।

पाप वास्तवमें क्या है ? शास्त्रनिषिद्ध आचरण । जिनका शास्त्रोंने निषेध किया कि ऐसा मत करो’ उसका करना ही पाप है । पाप कोई बलवान् वस्तु नहीं है, यह तो निकृष्ट है । जो निकृष्ट होता है, वह बलवान् भी हो तो उसमें ताकत नहीं होती । जैसे, बड़े-बड़े बलवान् चोर मकानपर चढ़ जाते हैं, भीतर आना चाहते हैं, पर घरमें उसी समय एक बालक रोने लगे, तो वे भाग जाते हैं; क्योंकि उनका हृदय कच्चा होता है । पापी-अन्यायी होनेसे उनमें ताकत नहीं होती । वे भाग जाते हैं बच्चेके रोनेकी आवाजमात्रसे । बेचारे पापमें शक्ति नहीं है । मनुष्यने ही इसको आदर देकर पकड़ रखा है । पाप तो बेचारे भागते हैं । जहाँ सत्संग हो जाय, वहाँ पाप कैसे टिक सकता है ! पर मनुष्य उसको पकड़-पकड़कर रखता है ।

पापोंको मनुष्य क्यों रखता है ? इनका आदर क्यों करता है ? क्या पाप सुखदायी हैं ? एक तो इसके भावना यह है कि पाप नष्ट नहीं होंगे । हमारे पाप ऐसे जल्दी नष्ट नहीं होंगे । आप जब संकल्प रखोगे कि ये नष्ट नहीं होंगे तो वे कैसे नष्ट होंगे ? अर्जुनने पूछा कि मनुष्य न चाहता हुआ पाप क्यों करता है ? तो भगवान्‌ने उत्तर दिया काम एष क्रोध एष’ काम ही क्रोध है और पाप होनेमें कारण कामना है । इनको पकड़कर रखेंगे तो पाप रहेंगे ही; क्योंकि पापके बापको पकड़ लिया आपने । अब बेटा पैदा होगा ही । पाप किससे होते हैं ? पाप सब होते हैं कामनासे, भोग-भोगनेकी और पदार्थोंके संग्रहकी इच्छासे । यह इच्छा है पापका बाप ।

पापका बाप

एक प्रसिद्ध कहानी है‒एक पण्डितजी काशीसे पढ़कर आये । ब्याह हुआ, स्त्री आयी । कई दिन हो गये । एक दिन स्त्रीने प्रश्न पूछा कि पण्डितजी महाराज ! यह तो बताओ कि पापका बाप कौन है ? पण्डितजी पोथी देखते रहे, पर पता नहीं लगा, उत्तर नहीं दे सके । अब बड़ी शर्म आयी कि स्त्री पूछती है पापका बाप कौन है ? हमने इतनी पढ़ाई की, पर पता नहीं लगा । वे वापस काशी जाने लगे ।
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे