Dec
25
(गत ब्लॉगसे आगेका)
मार्गमें ही एक वेश्या रहती थी । उसने सुन रखा था कि पण्डितजी
काशी पढ़कर आये हैं । उसने पूछा‒‘कहाँ जा रहे हैं महाराज ?’ तो बोले‒‘मैं काशी जा रहा हूँ ।’ काशी क्यों जा रहे हैं ?
आप तो पढ़कर आये हैं ?
तो बोले‒‘क्या करूँ ?
मेरे घरमें स्त्रीने यह प्रश्र पूछ लिया कि पापका बाप कौन है
? मेरेको उत्तर देना आया नहीं । अब पढ़ाई करके देखूँगा कि पापका बाप कौन है ?’ वह वेश्या बोली‒‘आप वहाँ क्यों जाते हो ?
यह तो मैं यहीं बता सकती हूँ आपको ।’
बहुत अच्छी बात । इतनी दूर जाना ही नहीं पड़ेगा । ‘आप घरपर पधारो । आपको पापका बाप मैं बताऊँगी ।’ अमावस्याके एक
दिन पहले पण्डितजी महाराजको अपने घर बुलाया । सौ रुपया सामने भेंट दे दिये और कहा कि
‘महाराज ! आप मेरे यहाँ कल भोजन करो ।’ पण्डितजीने कह दिया‒‘क्या हर्ज है, कर लेंगे !’ पण्डितजीके
लिये रसोई बनानेका सब सामान तैयार कर दिया । अब पण्डितजी महाराज पधार गये और रसोई बनाने
लगे तो वह बोली‒‘देखो, पक्की रसोई तो आप पाते ही हो,
कच्ची रसोई हरेकके हाथकी नहीं पाते । पक्की रसोई मैं बना दूँ,
आप पा लेना’ ! ऐसा कहकर सौ रुपये पासमें और रख दिये । उन्होंने देखा कि पक्की
रसोई हम दूसरोंके हाथकी लेते ही हैं, कोई हर्ज नहीं, ऐसा करके स्वीकार कर लिया । अब रसोई बनाकर पण्डितजीको परोस दिया
। सौ रुपये और पण्डितजी महाराजके आगे रख दिये और नमस्कार करके बोली‒‘महाराज ! जब मेरे
हाथसे बनी रसोई आप पा रहें हैं तो मैं अपने हाथसे ग्रास दे दूँ । हाथ तो वे ही हैं,
जिनसे रसोई बनायी है,
ऐसी कृपा करो ।’ पण्डितजी तैयार हो गये उसकी बातपर । उसने ग्रासको
मुँहके सामने किया और उन्होंने ज्यों ही ग्रास लेनेके लिये मुँह खोला कि उठाकर मारी
थप्पड़ जोरसे, और वह बोली‒‘अभीतक आपको ज्ञान नहीं हुआ ?
खबरदार ! जो मेरे घरका अन्न खाया तो ! आप जैसे पण्डितका मैं
धर्म-भ्रष्ट करना नहीं चाहती । यह तो मैंने पापका बाप कौन है,
इसका ज्ञान कराया है ।’ रुपये ज्यों-ज्यों आगे रखते गये पण्डितजी
ढीले होते गये ।
इससे सिद्ध क्या हुआ ?
पापका बाप कौन हुआ ?
रुपयोंका लोभ ! ‘त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः’ (गीता
१६ । २१) । काम, क्रोध और लोभ‒ये नरकके खास दरवाजे हैं ।
पर उपदेस कुसल बहुतेरे ।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे ॥
(मानस, लंकाकाण्ड,
दोहा ७८ । २)
दूसरोंको उपदेश देनेमें तो लोग कुशल होते हैं, परंतु
उपदेशके अनुसार ही खुद आचरण करनेवाले बहुत ही कम लोग होते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |