।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७१, शुक्रवार
मानसमें नाम-वन्दना

                               
                  
              

 
 (गत ब्लॉगसे आगेका)

मनुष्य खयाल नहीं करता कि क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये । औरोंको समझाते हुए पण्डित बन जाते हैं । अपना काम जब सामने आता है, तब पण्डिताई भूल जाते हैं, वह याद नहीं रहती ।

परोपदेशवेलायां  शिष्टाः सर्वे  भवन्ति हि ।
विस्मरन्तीह शिष्टत्वं स्वकार्ये समुपस्थिते ॥

दूसरोंको उपदेश देते समय जो पण्डिताई होती है, वही अगर अपने काम पड़े, उस समय आ जाय तो आदमी निहाल हो जाय । जाननेकी कमी नहीं है, काममें लानेकी कमी है । हमें एक सज्जनने बड़ी शिक्षाकी बात कही कि आप व्याख्यान देते हुए साथ-साथ खुद भी सुना करो । इसका अर्थ यह हुआ कि मैं जो बातें कह रहा हूँ तो मेरे आचरणमें कहाँ कमी आती है ? कहाँ-कहाँ गलती होती है ? जो आदमी अपना कल्याण चाहे तो वह दूसरोंको सुननेके लिये व्याख्यान न दे । अपने सुननेके लिये व्याख्यान दे । लोग सुननेके लिये सामने आते हैं, उस समय कई बातें पैदा होती हैं । अकेले बैठे इतनी पैदा नहीं होतीं । इसलिये उन बातोंको स्वयं भी सुनें । केवल औरोंकी तरफ ज्ञानका प्रवाह होता है, यह गलती होती है ।

पण्डिताई  पाले  पड़ी   ओ  पूरबलो  पाप ।
ओराँ ने परमोदताँ खाली  रह  गया  आप ॥
पण्डित केरी पोथियाँ ज्यूँ  तीतरको  ज्ञान ।
ओराँ सगुन बतावहि  आपा  फंद  न जान ॥
करनी बिन कथनी कथे अज्ञानी दिन रात ।
कूकर ज्यूँ भुसता फिरे  सुनी  सुनाई  बात ॥

हमें एकने बताया‒कूकर ज्यूँ भुसता फिरे’‒इसका अर्थ यह हुआ कि एक कुत्ता यहाँ किसीको देखकर भुसेगा तो दूसरे मोहल्लेके कुत्ते भी देखा-देखी भुसने लग जायेंगे । एक-एकको सुनकर सब कुत्ते भुसने लग जायेंगे । अब उनको पूछा जाय कि किसको भुसते हो ? यह तो पता नहीं । दूसरा भुसता है न, इसलिये बिना देखे ही भुसना शुरू कर दिया । ऐसे ही दूसरा कहता है तो अपने भी कहना शुरू कर दिया । अरे, वह क्यों कहता है ? क्या शिक्षा देता है ? उसका क्या विचार है ? सुनी-सुनायी बात कहना शुरू कर देनेसे बोध नहीं होता । इसलिये मनुष्यको अपनी जानकारी अपने आचरणमें लानी चाहिये ।

भजनमें दिखावा

भगवान्‌का नाम प्रेमपूर्वक लेता रहे, नेत्रोंसे जल झरता रहे, हृदयमें स्नेह उमड़ता रहे, रोमांच होता रहे तो देखो, उनमें कितनी विलक्षणता आ जाती है, पर वही दूसरोंको दिखानेके लिये, दूसरोंको सुनानेके लिये करेंगे तो उसका मूल्य घट जायगा । यह चीज औरोंको दिखानेकी नहीं है । धन तिजोरीमें रखनेका होता है । किसीने एक सेठसे पूछा‒‘तुम घरमें रहते हो या दूकानमें ? कहाँ सोते हो ? तो सेठने कहा‒‘हम हाटमें सोवें, बाटमें सोवें, घरमें सोवें, सोवें और न भी सोवें ।’

अगर हम कहें कि दूकानमें सोते हैं तो घरमें चोरी कर लेगा ! घरमें सोनेकी कहें तो दूकानमें चोरी कर लेगा । अर्थ यह हुआ कि तुम चोरी करने मत आना । लौकिक धनके लिये इतनी सावधानी है कि साफ नहीं कह सकते हो कि कहाँ सोते हैं ? और नामके लिये इतनी उदारता कि लोगोंको दिखावें ! राम, राम, राम ! कितनी बेसमझी है ! यह क्या बात है ? नामको धन नहीं समझा है । इसको धन समझते तो गुप्त रखते ।
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे