।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७१, गुरुवार
पुत्रदा एकादशीव्रत (सबका)
करणसे अतीत तत्त्व

                             
           
     

 उपनिषदोंमें आया है कि मनके द्वारा परमात्मतत्त्वको प्राप्त नहीं किया जा सकता; जैसे‒
१.    यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम् ।
                                  (केन १ । ५)
२.    न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छइत नो मनः ।
                                                        (केन १ । ३)
३. नैव वाचा न मनसा प्राप्तुं शक्यो न चक्षुषा ।
                                                 (कठ २ । ३ । १२)
परन्तु इसके साथ ही मनके द्वारा परमात्मतत्त्वको प्राप्त करनेकी भी बात आयी है; जैसे‒
१. मनसैवानुद्रष्टव्यम् (बृहदा ४ । ४ । १९)
२. मनसैवेदमाप्तव्यम् (कठ २ । १ । ११)
इन दोनों बातोंका सामंजस्य कैसे हो, इसपर कुछ विचार किया जाता है ।
परमात्मतत्त्वको प्राप्त करनेके साधन दो प्रकारके हैं‒करणसापेक्ष अर्थात् क्रियाप्रधान साधन और करणनिरपेक्ष अर्थात् विवेकप्रधान साधन । करणसापेक्ष साधनमें अन्तःकरणकी प्रधानता रहती है और करणनिरपेक्ष साधनमें विवेकपूर्वक अन्तःकरणसे सम्बन्ध-विच्छेदकी प्रधानता रहती है । अतः उपनिषदोंमें आये यन्मनसा न मनुते’ आदि पदोंमें करणनिरपेक्ष साधनकी बात कही गयी है और मनसैवानुद्रष्टव्यम्’ पदमें करणसापेक्ष साधन (ध्यानयोग) की बात कही गयी है । साधन चाहे करणसापेक्ष हो, चाहे करणनिरपेक्ष हो, परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति करणनिरपेक्षतासे अर्थात् विवेककी प्रधानतासे ही होती है । कारण कि परमात्मतत्त्व करणसे अतीत है; अतः कोई भी करण वहाँतक नहीं पहुँचता ।
दृष्टान्तरूपसे यह कहा जा सकता है कि यन्मनसा न मनुते’ आदि पदोंमें फलव्याप्ति है और मनसैवानुद्रष्टव्यम्’ पदमें वृत्तिव्याप्ति है । परन्तु दार्ष्टान्तरूपसे यह बात ठीक नहीं बैठती । वास्तवमें परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिमें न वृत्तिव्याप्ति चलती है, न फलव्याप्ति ।
परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिमें वृत्तिव्याप्ति तभी हो सकती है, जब वह वृत्ति (मन-बुद्धि) का विषय हो । परन्तु वह वृत्तिका विषय है ही नहीं; वृत्ति वहाँतक पहुँचती ही नहीं । करणरहित परमात्मतत्त्वमें वृत्ति (करण) कैसे सम्भव है ? अनुत्पन्न निर्विकल्प तत्त्वमें उत्पन्न और नष्ट होनेवाली वृत्ति कैसे हो सकती है ? यदि चेतन तत्त्वमें वृत्ति मानें तो वह गुणातीत एवं निर्विकार कैसे हुआ ?
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे