(गत ब्लॉगसे आगेका)
रसनासे रटबो करे आठुं पहर
अभंग ।
रामदास उस सन्त का राम न छाड़े संग ॥
संत-महापुरुषोंने नामको बहुत विशेषतासे सबके लिये प्रकट कर दिया,
जिससे हर कोई ले सके;
परंतु लोगोंमें प्रायः एक बात हुआ
करती है कि जो वस्तु ज्यादा प्रकट होती है, उसका आदर नहीं करते हैं । ‘अतिपरिचयादवज्ञा’‒अत्यधिक प्रसिद्धि हो जानेसे उसका आदर नहीं होता । नामकी अवज्ञा
करने लग जाते हैं कि कोरा ‘राम-राम’ करनेसे क्या होता है ? ‘राम-राम’ तो हरेक करता है । टट्टी फिरते बच्चे भी करते रहते हैं । इसमें
क्या है ! ऐसे अवज्ञा कर देते हैं ।
हमारे भाई-बहनोंमें यह विचार उठता है कि हमारेको कोई विशेष साधन
बताया जाय, और जब उनको कहते हैं कि ऐसे
प्राणायाम करो, ऐसे बैठो, ऐसे आहार-विहार करो तो कह देंगे‒‘महाराज ! ऐसे तो हमारेसे होता
नहीं, हम तो साधारण आदमी हैं,
हम गृहस्थी हैं, निभता नहीं है, क्या करें ? यह तो कठिन है ।’ फिर ‘राम-राम’ करो तो वे कहेंगे कि ‘राम-राम’ हरेक बालक भी करते हैं । ‘राम-राम’ में क्या है ? अब कौन-सा बढ़िया साधन बतावें ?
अगर विधियाँ बतावें तो होती नहीं हमारेसे,
और ‘राम-राम तो हरेक बालक ही करता है । ‘राम-राम’ में क्या है ! यह जवाब मिलता है । अब आप ही बताओ उनको क्या कहा
जाय !
परमात्मतत्त्वसे विमुख होनेका यह एक तरहसे बढ़िया तरीका है ।
भगवन्नामके प्रकट हो जानेसे नाममें शक्ति कम नहीं हुई है । नाममें अपार शक्ति है और
ज्यों-की-त्यों मौजूद है । इसको संतोंने हमलोगोंपर कृपा करके प्रकट कर दिया;
परंतु लोगोंको यह साधारण दीखता है । नाम-जप साधारण तभीतक दीखता है, जबतक
इसका सहारा नहीं लेते हैं, इसके शरण नहीं होते हैं । शरण कैसे होवें ?
विधि क्या है ?
शरण लेनेकी विधि नहीं होती है । शरण लेनेकी तो आवश्यकता
होती है । जैसे,
चोर-डाकू आ जाये मारने-पीटने लगें,
ऐसी आफतमें आ जायँ तो पुकारते हैं कि नहीं,
‘मेरी रक्षा करो,
मुझे बचाओ’ ऐसे चिल्लाते हैं । कोई लाठी लेकर कुत्तेके पीछे पड़ जाय और वहाँ
भागनेकी कहीं जगह नहीं हो तो बेचारा कुत्ता लाठी लगनेसे पहले ही चिल्लाने लगता है ।
यह चिल्लाना क्या है ? वह पुकार करता है कि मेरी रक्षा होनी चाहिये । उसके पुकारकी
कोई विधि होती है क्या ? मुहूर्त होता है क्या ? ‘हरिया
बंदीवान ज्यूँ करिये कूक पुकार’
(अपूर्ण)
‒‘मानसमें
नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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