।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि

फाल्गुन कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७१, गुरुवार
श्रीजानकी-जयन्ती 
मानसमें नाम-वन्दना

      

(गत ब्लॉगसे आगेका)

काठमें अथवा दियासलाईमें आग रहती है, वह आग दूसरी है और सुलगती है, वह आग दूसरी है‒ऐसा कोई नहीं कह सकता । दोनों एक ही हैं । एक तो दीखती है और एक नहीं दीखती । केवल इतना अन्तर है । ऐसे नहीं दीखनेवाले परमात्माके रूपको अगुण कह देते हैं दीखनेवाले रूपको सगुण कह देते हैं, पर परमात्मा दो नहीं हैं, तत्त्व एक ही है । इस तत्त्वको समझना ही ब्रह्म बिबेकू’ है ।

उभय अगम जुग सुगम नाम तें’‒दोनों ही परमात्माके रूप अगम्य हैं । इनकी प्राप्ति करना चाहें तो निर्गुणकी प्राप्ति भी कठिन है और सगुणकी प्राप्ति भी कठिन है । इनको जानना चाहें तो अगुण और सगुण दोनोंको जानना कठिन है । इन दोनोंमें भी गोस्वामीजी महाराज आगे चलकर कहेंगे कि सगुणका जानना और भी कठिन है । अवतार लेकर मनुष्य जैसे चरित्र करते हैं‒इस कारण उनको जाननेमें कठिनता है ।

निर्गुन  रूप  सुलभ  अति  सगुन  जान  नहिं कोइ ।
सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होइ ॥
(मानस, उत्तरकाण्ड, दोहा ७३ ख)

अगुणरूपको तो हर कोई जान सकता है, पर सगुण-रूपको हर कोई नहीं जानता । मनुष्यकी तरह आचरण करते देखकर बड़े-बड़े ऋषि-मुनियोंके मनमें भी भ्रम हो जाता है । वे भगवान्‌को मनुष्य ही मान लेते हैं । वे कहते हैं, यह तो मनुष्य ही है । गीतामें भी भगवान्‌ने कहा है‒देवता और महर्षि भी मेरे परम अविनाशी भावको नहीं जानते, इसलिये अवतार लेकर घूमते हुए मुझको मूढ़ लोग साधारण मनुष्य मानकर मेरी अवज्ञा करते हैं अर्थात् मेरा तिरस्कार, अपमान, निन्दा करते हैं[*] ।’ उन मूर्खोंके सामने हीरा भी पत्थर होता है । न जाननेके कारण वे निन्दा करते हैं । उनकी निन्दाका कोई मूल्य नहीं है । कारण कि वे बेचारे जानते नहीं, अनजान हैं ।

नामसे निर्गुण-सगुणकी सुलभता

निर्गुणरूपको सुलभ बताया है । दोनों रूपोंको देखा जाय तो निर्गुणका स्वरूप सुगम है । कारण कि निर्गुणस्वरूपमें दोषबुद्धि होनेकी गुंजाइश नहीं है । युक्तियोंसे भी उसकी सिद्धि की जा सकती है । पर सगुणमें दोषबुद्धि होनेकी गुंजाइश है और युक्तियोंसे सिद्ध भी नहीं हो सकता ।

परंतु जहाँ साधनाकी चर्चा हुई है, वहाँ गोस्वामीजीने भक्तिके साधनको सुगम बताया है सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी’ और ज्ञानके पंथको कृपाणकी धारा बताया है । तलवारकी धारपर चलना बड़ा मुश्किल होता है । इस तरहसे निर्गुणका मार्ग बड़ा कठिन है और सगुण परमात्माका मार्ग अर्थात् उनकी भक्ति सुगम है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे




[*] न मे विदुः सुरगणाः  प्रभव  न  महर्षयः ।
   अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥ (१० । २)

   अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् ।
   परं   भावमजानन्तो    मम   भूतमहेश्वरम् ॥ (९ । ११)