।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७१, बुधवार 
मानसमें नाम-वन्दना




(गत ब्लॉगसे आगेका)

हनुमान्‌जीके द्वारा मैंने आपका सुयश सुना कि आप जन्म-मरणके भयका नाश करनेवाले हैं । दुःखियोंका दुःख दूर करनेवाले आप मेरी रक्षा कीजिये । मैं आपके शरणमें आया हूँ । विभीषणने भगवान्‌पर कोई दोषारोपण नहीं किया । उसके मनमें संकोच था, भय लगता था, इसलिये हनुमान्‌जी महाराजसे भी उसने कहा कि महाराज ! क्या मेरे जैसेको भी भगवान् स्वीकार कर लेंगे ? हनुमान्‌जी कहते हैं‒‘देखो मेरे जैसेको भी स्वीकार कर लिया है ।’ भगवान् सबको स्वीकार करते हैं, तुमको भी स्वीकार कर लेंगे, इस प्रकार जब आश्वासन दिया, तब हिम्मत हुई । विभीषण संकोच रखता था और साधन करता था । भगवान्‌ने उसको भी अपना सखा बनाया । सुग्रीव जैसेको भी निषादराज गुहकी तरह अपना सखा बना लिया ।

विभीषणने क्या किया कि जब सर्वथा विजय हो गयी और रावण मारा गया, तब विभीषणने भगवान्‌से कहा‒महाराज ! आप घरपर पधारिये ।’

अब जन गृह  पुनीत प्रभु कीजे ।
मज्जनु करिअ समर श्रम छीजे ॥
(मानस, लंकाकाण्ड, दोहा ११६ । ५)

जिससे युद्धका परिश्रम दूर होवे । मेरा घर पवित्र करो, पधारो ।’ तो भगवान्‌ने कहा‒‘भाई ! तुम्हारा घर हमारा ही है, यह सच है, पर हमारेको भरतकी याद आ रही है । भरत भी मेरेको याद करता है, इसलिये मेरेको अयोध्या जल्दी पहुँचना है । गाँवमें, घरोंमें मैं नहीं जाता हूँ, इस कारण लक्ष्मणजीको भेजता हूँ, यह राजगद्दी कर देगा । विभीषणने युद्ध समाप्त होनेके बाद घर पधारनेके लिये कहा । जबकि निषादराज गुहने आरम्भमें मिलते ही यह कहा कि आप घरपर पधारो; परंतु बन्दा सुग्रीवने कहा ही नहीं कि आप मेरे घर पधारो । ऐसा विषयी था । फिर भी रामजी तो तीनोंको ही सखा कहते हैं ।

भगवान् कहते हैं कि तुम अपने गुण-अवगुणोंकी तरफ मत देखो । केवल मेरे सम्मुख हो जाओ, मेरे पास आ जाओ, बस ।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।
जन्म कोटि अध  नासहिं तबहीं ॥
(मानस, सुन्दरकाण्ड, दोहा ४४ । २)

इसलिये भगवान्‌की शरण ले लो, आश्रय ले लो, उनके सम्मुख हो जाओ । वे सबको सखा बनानेको, सबको अपना बनानेको तैयार हैं । भगवान् एक हाथमें धनुष और एक हाथमें बाण रखते हैं । बाण तो होता है सीधा और धनुष होता है टेढ़ा । वे दोनोंको ही हाथमें रखते हैं, सीधेको (बाणको) छोड़ देते हैं, पर टेढ़े (धनुष) को नहीं छोड़ते हैं; क्योंकि उसपर कृपा विशेष रखते हैं, यह कहीं जायगा तो फँस जायगा ।

इसलिये जैसे भी हो, अपनी ओरसे सरल, सीधे होकर भगवान्‌के चरणोंकी शरण चले जाओ, बस । आश्रय भगवान्‌का पकड़े रखो । फिर आप डरो मत कि हम कैसे हैं, कैसे नहीं हैं, इसकी जरूरत नहीं है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे