Mar
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नाम
गरीब
अनेक नेवाजे ।
लोक
बेद बर बिरिद बिराजे ॥
(मानस,
बालकाण्ड दोहा २५ । २)
नाम महाराजने तो कई गरीबोंके ऊपर कृपा कर दी है । लोकमें और
वेद-शास्त्रोंमें सब जगह नामकी विरदावली (यशकी प्रतिष्ठा) प्रसिद्ध है ।
राम
भालु कपि कटकु बटोरा ।
सेतु
हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २५ । ३)
सुग्रीवसे मित्रता हो गयी,
फिर युद्धकी तैयारी होने लगी । श्रीरामजीने भालू (रीछ) और बन्दरोंकी
बड़ी भारी सेना इकट्ठी की और समुद्रसे पार उतरनेके लिये पुल बनानेमें कितना परिश्रम
किया ! यह सब कोई जानते ही हैं ।
नामु
लेत भवसिंधु सुखाहीं ।
करहु
बिचारु सुजन मन माहीं ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २५ । ४)
भगवान्का नाम लेते ही संसार-समुद्र सूख जाता है और फिर तो पैदल
ही चले जाओ पार । तैरना ही नहीं पड़े । कोई पुल बनानेकी भी जरूरत नहीं । ऐसे नाम महाराजको
परिश्रम करना नहीं पड़ता । ‘करहु बिचारु सुजन मन माहीं’
पहले यह बात कह आये हैं ‘को बड़ छोट
कहत अपराधू । सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू ॥’ यहाँ कहते हैं कि सज्जन लोग मनमें
ही विचार कर लो, हम छोटा-बड़ा क्या बतावें,
आप ही विचार कीजिये कि इन दोनोंमें बड़ा कौन है ?
राम सकुल रन रावनु
मारा ।
सीय
सहित निज पुर पगु धारा ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २५ । ५)
श्रीरामजीने कुटुम्बसहित रावणको मार दिया और उसके बाद सीताजीके
सहित आप श्रीरघुनाथजी महाराज अयोध्यामें पधार गये ।
राजा
रामु
अवध रजधानी ।
गावत
गुन सुर मुनि बर बानी ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २५ । ६)
राज-सिंहासनपर आप विराजमान हो गये और अयोध्या राजधानी हुई ।
देवता, ऋषि, मुनि, सन्त-महात्मा आदि उनकी बड़ी सुन्दर स्तुति करते हैं । श्रेष्ठ
वाणीसे उनका वर्णन करते हैं । इस प्रकार यह तो रामजी महाराजने स्वयं ऐसा किया कि दुष्टोंको
मारकर श्रेष्ठ राजधानी बना ली । अब देखो ! नाम महाराज क्या करते हैं ?
सेवक
सुमिरत नामु सप्रीती ।
बिनु
श्रम प्रबल मोहदलु जीती ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २५ । ७)
(अपूर्ण)
‒‘मानसमें
नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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