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।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७१, गुरुवार 
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

नाम  गरीब    अनेक  नेवाजे ।
लोक बेद बर बिरिद बिराजे ॥
(मानस, बालकाण्ड दोहा २५ । २)

नाम महाराजने तो कई गरीबोंके ऊपर कृपा कर दी है । लोकमें और वेद-शास्त्रोंमें सब जगह नामकी विरदावली (यशकी प्रतिष्ठा) प्रसिद्ध है ।

राम भालु कपि कटकु बटोरा ।
सेतु हेतु श्रमु  कीन्ह  न थोरा ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । ३)

सुग्रीवसे मित्रता हो गयी, फिर युद्धकी तैयारी होने लगी । श्रीरामजीने भालू (रीछ) और बन्दरोंकी बड़ी भारी सेना इकट्‌ठी की और समुद्रसे पार उतरनेके लिये पुल बनानेमें कितना परिश्रम किया ! यह सब कोई जानते ही हैं ।

नामु  लेत   भवसिंधु   सुखाहीं ।
करहु बिचारु सुजन मन माहीं ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । ४)

भगवान्‌का नाम लेते ही संसार-समुद्र सूख जाता है और फिर तो पैदल ही चले जाओ पार । तैरना ही नहीं पड़े । कोई पुल बनानेकी भी जरूरत नहीं । ऐसे नाम महाराजको परिश्रम करना नहीं पड़ता । करहु बिचारु सुजन मन माहीं’ पहले यह बात कह आये हैं ‘को बड़ छोट कहत अपराधू । सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू ॥’ यहाँ कहते हैं कि सज्जन लोग मनमें ही विचार कर लो, हम छोटा-बड़ा क्या बतावें, आप ही विचार कीजिये कि इन दोनोंमें बड़ा कौन है ?

राम   सकुल  रन  रावनु  मारा ।
सीय सहित निज पुर पगु धारा ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । ५)

श्रीरामजीने कुटुम्बसहित रावणको मार दिया और उसके बाद सीताजीके सहित आप श्रीरघुनाथजी महाराज अयोध्यामें पधार गये ।

राजा  रामु   अवध   रजधानी ।
गावत गुन सुर मुनि बर बानी ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । ६)

राज-सिंहासनपर आप विराजमान हो गये और अयोध्या राजधानी हुई । देवता, ऋषि, मुनि, सन्त-महात्मा आदि उनकी बड़ी सुन्दर स्तुति करते हैं । श्रेष्ठ वाणीसे उनका वर्णन करते हैं । इस प्रकार यह तो रामजी महाराजने स्वयं ऐसा किया कि दुष्टोंको मारकर श्रेष्ठ राजधानी बना ली । अब देखो ! नाम महाराज क्या करते हैं ?

सेवक  सुमिरत   नामु  सप्रीती ।
बिनु श्रम प्रबल मोहदलु जीती ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । ७)

   (अपूर्ण)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे