।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण सप्तमी, वि.सं.२०७१, शुक्रवार
श्रीशीतलाष्टमीव्रत
असत्‌का वर्णन



जिसका किसी भी देश, काल, क्रिया, वस्तु, व्यक्ति, अवस्था, परिस्थिति, घटना आदिमें अभाव है, उसका कहीं भी भाव नहीं है अर्थात् उसका सदा ही अभाव है, और वह असत् है‒‘नासतो विद्यते भावः’ (गीता २ । १६)

जो किसी देशमें है और किसी देशमें नहीं है, वह किसी भी देशमें नहीं है । जो किसी कालमें है और किसी कालमें नहीं है, वह किसी भी कालमें नहीं है । जो किसी क्रियामें है और किसी क्रियामें नहीं है, वह किसी भी क्रियामें नहीं है । जो किसी वस्तुमें है और किसी वस्तुमें नहीं है, वह किसी भी वस्तुमें नहीं है । जो किसी व्यक्तिमें है और किसी व्यक्तिमें नहीं है, वह किसी भी व्यक्तिमें नहीं है । जो किसी अवस्थामें है और किसी अवस्थामें नहीं है, वह किसी भी अवस्थामें नहीं है । जो किसी परिस्थितिमें है और किसी परिस्थितिमें नहीं है, वह किसी भी परिस्थितिमें नहीं है । जो किसी घटनामें है और किसी घटनामें नहीं है, वह किसी भी घटनामें नहीं है अर्थात् उसका सभी घटनाओंमें अभाव है ।

जो किसी शरीरमें है और किसी शरीरमें नहीं है, वह किसी भी शरीरमें नहीं है । जो किसी वर्णमें है और किसी वर्णमें नहीं है, वह किसी भी वर्णमें नहीं है । जो किसी जातिमें है और किसी जातिमें नहीं है, वह किसी भी जातिमें नहीं है । जो किसी आश्रममें है और किसी आश्रममें नहीं है, वह किसी भी आश्रममें नहीं है । जो किसी समुदायमें है और किसी समुदायमें नहीं है, वह किसी भी समुदायमें नहीं है; यदि है तो वह आगन्तुक है ।

जो कर्तृत्व किसी व्यक्तिमें है और किसी व्यक्तिमें नहीं है, वह किसीमें भी नहीं है अर्थात् वास्तवमें कर्तृत्व है ही नहीं, केवल माना हुआ है । काम, क्रोध और लोभवृत्ति कभी होती हैं और कभी नहीं होतीं तो वस्तुतः उनका नहीं होना ही सिद्ध होता है । इसी प्रकार मोह मद और मत्सरवृत्ति कभी होती हैं और कभी नहीं होतीं तो वस्तुतः उनका नहीं होना ही सिद्ध होता है । अर्थात् उनका सदा ही अभाव है । यदि ये वृत्तियों वास्तवमें होतीं तो कभी घटतीं अथवा मिटती नहीं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सहज साधना’ पुस्तकसे