।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

भरतजीने भी हनुमान्‌जीसे कह दिया नाहिन तात उरिन मैं तोही’ तुमने जो बात सुनायी, उससे उऋण नहीं हो सकता । अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ।’ अब भगवान्‌के चरित्र सुनाओ । खबर सुनानेमात्रसे तो आप पहले ही ऋणी हो गये । चरित्र सुनानेसे और अधिक ऋणी हो जाओगे । भरतजीने विचार किया कि जब कर्जा ले लिया तो कम क्यों लें ? कर्जा तो ज्यादा हो जायगा, पर रामजीकी कथा तो सुन लें । हनुमान्‌जी महाराजको प्रसन्न करनेका उपाय भी यही है और उऋण होनेका उपाय भी यही है कि उनको रामजीकी कथा सुनाओ, चाहे उनसे सुन लो । रामजीकी चर्चासे वे खुश हो जाते हैं । इस प्रकार हनुमान्‌जीके सब वशमें हो गये ।

अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ ।
भए मुकुत  हरि  नाम  प्रभाऊ ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । ७)

अब जो आचरणोंसे, योनिसे, सब तरहसे बहुत नीच हैं, वे भी नामके प्रभावसे मुक्त हो गये । ऐसे भक्तोंके उदाहरण देते हैं । अजामिल ब्राह्मण घरमें जन्मा था, पर वेश्याके घरमें चला गया, ऐसे आचरणोंसे गिर गया था । गणिका तोतेको पढ़ाया करती । बोलो राधेकृष्ण ! राधेकृष्ण ! गोपीकृष्ण ! वह कोई नाम-जप नहीं कर रही थी, पर साँपने काटा और मरी तो मुक्त हो गयी । हाथी‒गजराज भी मुक्त हो गया । ये सब-के-सब भगवन्नामके प्रभावसे मुक्त हो गये । इस प्रकार ऊँचे-से-ऊँचे भगवान् शंकरसे लेकर पापी-से-पापी वेश्यातककी बात कह दी । इसका अर्थ हुआ कि भगवन्नाम लेनेके सब अधिकारी हैं । कोई भी अनधिकारी नहीं है । भक्ति करनेके सब अधिकारी हैं । शाण्डिल्य सूत्रमें आता है‒‘आनिन्द्ययोन्यधिक्रियते पारम्पर्यात् सामान्यवत्’ निन्दनीय-से-निन्दनीय योनिवाला और निन्दनीय-से-निन्दनीय कर्म करनेवाला कोई हो, वह भी भगवान्‌के चरणोंकी शरण चला जाय तो उसके लिये भी मना नहीं है । कितनी विचित्र बात है ! नामकी महिमा ऐसे कहते-कहते गोस्वामीजी महाराज मस्त हो जाते हैं ।

कहौं कहाँ  लगि  नाम बड़ाई ।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २६ । ८)

नामके गुण गानेमें भगवान् राम स्वयं भी असमर्थ हैं, फिर दूसरेकी तो बात ही क्या है, क्योंकि नामकी महिमा अपार है । भगवान् सर्वसमर्थ हैं, साथ-साथ सर्वज्ञ भी हैं । नामकी अपार महिमा जानते हैं, पर कह नहीं सकते तो क्या इसमें रामजीकी निन्दा हो गयी ! इसमें निन्दा नहीं है । यह नाम बड़ा है किनके लिये ? हम सांसारिक लोगोंके लिये । रामजीसे और ब्रह्मसे भी बड़ा है । नामसे भगवान् प्रकट हो जायँ, तत्त्वज्ञान हो जाय, इस कारण हमारे लिये नाम बड़ा है । किसी धनी आदमीके बारेमें कहें कि उसके पास इतना धन है कि उसको खुदको भी पूरा पता नहीं है कि कितना है । इसमें उसकी निन्दा कैसे हुई ? यह तो उसकी प्रशंसा ही हुई ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे