(गत ब्लॉगसे आगेका)
पहले हनुमान्जी आये थे तो भरतजीका बाण
लगा था, उस समय उन्होंने वहाँकी बात कही कि ‘युद्ध हो रहा है, लक्ष्मणजीको
मूर्च्छा हो गई है और सीताजीको रावण ले गया है ।’ अब किसकी विजय हुई, क्या हुआ ?
इसका पता नहीं है ? यह सब इतिहास जानना चाहते हैं भरतजी महाराज । तो थोड़ेमें सब
इतिहास सुना दिया । ऐसे ‘अपने बस करि राखे रामू ॥’
इनकी सेवासे रामजी अपने परिवारसहित वशमें हो गये । ऐसी कई कथाएँ आती हैं । हनुमान्जी
महाराज सेवा बहुत करते थे । सेवा करनेवालेके वशमें सेवा लेनेवाला हो ही जाता है ।
सेवा करनेवाला ऐसे तो छोटा कहलाता है और
दास होकर ही सेवा करता है; परन्तु सेवा करनेसे सेवक मालिक हो जाता है और सेवा
लेनेवाला स्वामी उसका दास हो जाता है । स्वामीको सेवककी
सब बात माननी पड़ती है । संसारमें रहनेकी यह बहुत
विलक्षण विद्या है‒सेवा करना ‘सेवाधर्मः परमगहनो
योगिनामप्यगम्यः’ सेवाका धर्म बड़ा कठोर है ।
भरतजी महाराज भी यही कहते हैं । ऐसे
सेवा-धर्मको हनुमान्जी महाराजने निभाया ।
वे रघुनाथजी महाराजकी खूब सेवा करते थे ।
जंगलमें तो सेवा करते ही थे, राजगद्दी होनेपर भी वहाँ हनुमान्जी महाराज सेवा
करनेके लिये साथमें रह गये । एक बारकी बात है । लक्ष्मणजी और सीताजीके मनमें आया
कि हनुमान्जीको कोई सेवा नहीं देनी है । देवर-भौजाईने आपसमें बात कर ली कि
महाराजकी सब सेवा हम करेंगे । सीताजीने हनुमान्जीके सामने बात रखी कि ‘देखो बेटा ! तुम सेवा करते
हो ना ! अब वह सेवा हम करेंगे । इस कारण तुम्हारे लिये कोई सेवा नहीं है ।’
हनुमान्जी बोले‒‘माताजी ! आठ पहर जो-जो सेवा आपलोग करोगे, उसमेंसे जो बचेगी, वह
सेवा मैं करूँगा । इसलिये एक लिस्ट बना दो ।’ बहुत अच्छी बात । अब कोई सेवा
हनुमान्के लिये बची नहीं । हनुमान्जी महाराजको बहाना मिल गया । भगवान्को जब
उबासी आवे तो चुटकी बजा देवें ।
शास्त्रोंमें,
स्मृतियोंमें ऐसा वचन आता है कि उबासी आनेपर
शिष्यके लिये गुरुको भी चुटकी बजा देनी चाहिये । इसलिये रघुनाथजी
महाराजको उबासी आते ही चुटकी बजा देते थे, यह सेवा हो गयी । अब वह उस कागजमें लिखी
तो थी ही नहीं । चुटकी बजानेकी कौन-सी सेवा है ! रात्रिके समय हनुमान्जीको बाहर
भेज दिया । अब तो वे छज्जेपर बैठे-बैठे मुँहसे ‘सीताराम सीताराम’ कीर्तन करते रहते
और चुटकी भी बजाते रहते । न जाने कब भगवान्को उबासी आ जाय । अब चुटकी बजने लगे तो
रामजीको भी जँभाई आनी शुरू हो गयी । सीताजीने देखा कि बात क्या हो गयी ? घबराकर
कौशल्याजीसे कहा और सबको बुलाने लगी । वशिष्ठजीको बुलाया कि रामललाको आज क्या हो
गया । वशिष्ठजीने पूछा‒‘हनुमान् कहाँ है ?’ ‘उसको तो बाहर भेज दिया ।’ ‘हनुमान्को
तो बुलाओ ।’ हनुमान्जी ने आते ही ज्यों चुटकी बजाना बन्द कर दिया, त्यों ही
भगवान्की जँभाई भी बन्द हो गयी । तब सीताजीने भी सेवा करनेकी खुली कर दी । इस
प्रकार हृदयमें रामजीको वशमें कर लिया ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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