।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)


आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७२, मंगलवार
मानसमें नाम-वन्दना
(गत ब्लॉगसे आगेका)
बाल्यावस्थामें ही रात-दिन लग गये इतना विश्वास, इतना भरोसा, इतनी दृढ़ता कि हिरण्यकशिपुसे इतनी दुनिया काँपती, देवता भी काँपते, ऐसे पितासे भी कोई भय नहीं, कहीं किसी तरहका भय देखातक नहीं वे तो बस, नाम जपते हैं मस्तीसे यह क्या है ? नाम-प्रसाद है जप करनेसे ऐसी कृपा हुई

ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ
पायउ   अचल   अनूपम  ठाऊँ
(मानस, बालकाण्ड दोहा २६ )

ध्रुवजी महाराजने भी नाम-जप किया, पर ग्लानिसे किया विमाताके कठोर वचनोंसे दुःखी होकर राज्यके लिये सकाम भावसे भजनमें लगे छोटे बालक होकर भी कितनी हिम्मत की ! इसलिये कहते हैं‒


हिम्मत मत छाड़ो नरां  मुख सूँ कहता राम
हरिया हिम्मत सूँ किया ध्रुवका अटल धाम

नारदजीने कहा‒‘अरे जंगलमें अकेला कहाँ रहेगा भय लगेगा वहाँ जंगलमें माँ थोड़ी बैठी है कहीं जा रहा है तू ! तो कहते हैं‒‘मैं तो भगवान्का भजन करूँगा ।’ फिर कई प्रलोभन दिये, बहुत-सी बातें बतायीं नारद बाबाने, पर डिगा ही नहीं ‘पायउ अचल अनूपम ठाऊँ’ उसने राज्यके लिये ही भजन किया था । इसलिये भगवान्ने कहा कि ‘इसके रहनेके लिये अटल धाम बनाता हूँ, जहाँसे कोई विचलित कर सके ।’ ऐसा ध्रुवलोक हो गया


हनुमान्‌जीका सेवाभाव

सुमिरि पवनसुत पावन नामू ।
अपने  बस  करि  राखे  रामू ॥
                              (मानस, बालबालकाण्ड, २६ । ६)

हनुमान्‌ने महान्‌ पवित्र नामका स्मरण करके श्रीरामजीको अपने वशमें कर रखा है । हरदम नाममें तल्लीन रहते हैं । ‘रहिये नाममें गलतान’ रात-दिन नाम जपते ही रहते हैं । हनुमान्‌जी महाराजको खुश करना हो तो राम-नाम सुनाओ, रामजीके चरित्र सुनाओ; क्योंकि ‘प्रभुचरित्र सुनिबेको रसिया’ भगवान्‌के चरित्र सुननेके बड़े रसिया हैं ।

          रामजीने भी कह दिया, ‘धनिक तूँ पत्र लिखाउ’ हनुमान्‌जीको धनी कहा और अपनेको कर्जदार कहा । रामजीने देखा कि मैं तो बन गया कर्जदार, पर सीताजी कर्जदार न बनें तो घरमें ही दो मत हो जायेंगे । इसलिये रामजीका सन्देश लेकर सीताजीके चरणोंमें हनुमान्‌जी महाराज गये । जिससे सीताजी भी ऋणी बन गयीं । ‘बेटा, तूने आकर महाराजकी बात सुनाई । ऐसा सन्देश और कौन सुनायेगा !’ रामजीने देखा कि हम दोनों तो ऋणी बन गये, पर लक्ष्मण बाकी रह गया । जब लक्ष्मणके शक्तिबाण लगा, उस समय संजीवनी लाकर लक्ष्मणजीके प्राण बचाये । ‘लक्ष्मणप्राणदाता च’ इस प्रकार जंगलमें आये हुए तीनों तो ऋणी बन गये, पर घरवाले बाकी रह गये । भरतजीको जाकर सन्देश सुनाया कि रामजी महाराज आ रहे हैं । हनुमान्‌जीने बड़ी चतुराईसे संक्षेपमें सारी बात कह दी ।

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत ।
सीता सहित  अनुज प्रभु आवत ॥
                                     (मानस, उत्तरकाण्ड, २ । ५)
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
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