।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७१, बुधवार 
मानसमें नाम-वन्दना




(गत ब्लॉगसे आगेका)

भगवान् एक शरीर धारण करके कितने जीवोंको सुखी कर सकते हैं; परंतु नाम लेकर प्रत्येक जीव आनन्द प्राप्त कर सकता है । नाम-जपसे अभक्त भक्त हो जाय । असाधु साधु हो जाय, दुष्ट सज्जन हो जाय, नाम महाराजको जोर पड़ता ही नहीं । बस इतनी-सी शर्त है कि प्रेमसहित, आदरसहित नाम-जप करें । इस प्रकार नाम-जप करनेसे मोदमें, मंगलमें निवास हो जाय । उसके सदाके लिये मौज हो जाती है । नाम जपनेवालेके किसी बातकी कमी रहती ही नहीं । प्रश्न उठ सकता है कि फिर लोग क्यों दुःखी हो रहे हैं ? इस बातपर विश्वास नहीं करते, इसलिये दुःखी हो रहे हैं । सब-का-सब संसार नाममें विश्वास न करनेके कारणसे मौतके चक्करमें पड़ा है ।

अश्रद्दधानाः पुरुषा  धर्मस्यास्य परन्तप ।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥
                                          (गीता ९ । ३)

मौतसे बढ़कर संसारमें कोई दुःख नहीं, जिसके आनेपर उस दुःखको सह नहीं सकते, इतना भयंकर दुःख कि प्राण छूट जाते हैं, उस दुःखके रास्तेमें केवल दुःखोंका ही सामना करना पड़ता है । विश्वास न करनेके कारण भगवान्‌के नामका जप करते नहीं । इसलिये मौतके रास्तेमें सब-का-सब संसार जा रहा है । अगर प्रेमसे विश्वास करके नाम-जप किया जाय तो सब-के-सब आनन्दमें मग्न हो जायँ ।

राम  एक   तापस  तिय  तारी ।
नाम कोटि खल कुमति सुधारी ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २४ । ३)

आगे गोस्वामीजी कहते हैं‒राम एक तापस तिय तारी’ जब वे जनकपुरी जा रहे थे तो बीचमें गौतमकी पत्नी अहिल्या पत्थररूपसे पड़ी हुई थी । भगवान् रामजीके चरणकी रज लगनेसे उसका उद्धार हो गया । अब ध्यान देना !

‘राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल कुमति सुधारी ॥’‒इस प्रकार एक-एक शब्दमें रामजीसे नामकी श्रेष्ठता बताते हैं । सगुण रामजीने केवल एक तापस स्त्रीका उद्धार किया । गिनतीमें एक और वह भी तपस्वीकी स्त्री । तपस्वीका आधा अंग (अर्धांगिनी) अशुद्ध थोड़ा ही होता है ! उसको तार दिया, उसका उद्धार कर दिया, इसमें क्या बड़ी बात की ! परंतु नाम महाराजने एककी नहीं, करोड़ोंकी; तापसकी नहीं, खलोंकी तथा स्त्री (सुमति) को नहीं, कुमतिको सुधारा । कुमति सुधर जाय तो वह स्वयं दूसरोंका उद्धार करनेवाला बन जाता है । जो केवल अपना ही उद्धार नहीं कर सकता, वह दुनियाका उद्धार करनेवाला संत बन जाता है । अब अहिल्याका उद्धार हो गया तो हमारेको क्या मिला ? नाम जपनेवाला हमारेको भी निहाल कर दे । इतनी महिमा है नाम-जपकी ! तात्पर्य है सगुण रामजीकी अपेक्षा नाम बहुत बड़ा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे