।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन पूर्णिमा, वि.सं.२०७१, गुरुवार
पूर्णिमा, होलिकादाह, श्रीचैतन्यमहाप्रभु-जयन्ती 
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

रिषि   हित   राम  सुकेतुसुता  की ।
सहित  सेन  सुत  कीन्हि  बिबाकी ॥
सहित   दोष   दुख   दास   दुरासा ।
दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा ॥
                         (मानस, बालकाण्ड, दोहा २४ । ४-५)

ऋषियोंका हित करनेके लिये अर्थात् विश्वामित्रजीका यज्ञ पूर्ण करनेके लिये उनके आश्रममें भगवान् राम पधारे । वहाँ उन्होंने विश्वामित्र ऋषिके हितके लिये सुकेतुराजकी लड़की ताड़काको मारा और उसके बेटेसहित उसकी सेनाको नष्ट कर दिया । यह तो रामजीने किया । अब नाम महाराज क्या करते हैं, इसको बताते हैं कि भगवान्‌के दासके सामने दुराशारूपी ताड़का आ जाय तो राम-राम’ करते ही ताड़का मर जायगी । भगवन्नाम प्रेमपूर्वक लेनेसे सभी बुरी कामनाएँ नष्ट हो जाती हैं । इस ताड़काके दो बेटे बताये हैं‒दोष और दुःख । दुराशासे ही दोष और दुःख पैदा होते हैं । दुराशा भीतरसे मिट जाती है तो न दोष बनता है, न दुःख होता है अर्थात् न पाप बनता है तथा न ही पापोंका फल‒दुःख होता है । दुराशा मर जाय और इनके बेटे भी मर जायँ । फिर इनकी जो सेना है‒काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, ईर्ष्या, द्वेष, पाखण्ड झूठ, दम्भ आदि ये कई तरहके राक्षस हैं । राम-राम’ करनेसे ये सेना भी सब-की-सब खतम हो जाती हैं । यह नाम महाराज सबका नाश कर देते हैं । जैसे सूर्योदय होनेसे रात्रिका नाम-निशान नहीं रहता । रात्रि आती है, तब सब जगह अँधेरा छा जाता है । बाहर और भीतर सब जगह अँधेरा ठसाठस भर जाता है मानो इतना भर जाता है कि सूई भी भीतर नहीं जावे । सूर्योदय होते ही अँधेरेकी जय रामजीकी हो जाती है अर्थात् अँधेरा विदा हो जाता है ।

एक कहानी आती है । एक बार अँधेरेने जाकर ब्रह्माजीसे शिकायत की कि महाराज ! सूर्यभगवान् मेरेको टिकने नहीं देते । जिस देशमें मैं जाता हूँ, वहींसे भगा देते हैं । मैं कहाँ जाऊँ? ऐसा वैर वे मुझसे रखते हैं ।’ ब्रह्माजीने सूर्यसे पूछा‒‘सूर्य महाराज ! आप बेचारे अन्धकारको क्यों दुःख देते हैं ? सूर्यने कहा‒‘महाराज ! उम्रभरमें मैंने उसको देखा ही नहीं । दुःख देना तो दूर रहा । हमारा और उसका कैसा वैर ? अब देखें कैसे ! वह सूर्यके सामने आता ही नहीं । ऐसे भगवन्नाम महाराजने दोष, दुःख और दुराशारूपी अँधेरेको देखा ही नहीं । नाम जहाँ आ जाता है, वहाँसे ये बेचारे सब भाग जाते हैं । रामजीकी अपेक्षा नाम महाराजने कितना बड़ा काम किया !

भंजेउ  राम  आपु भव चापू ।
भव भय भंजन नाम प्रतापू ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २४ । ६)

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे