।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण द्वितीया, वि.सं.२०७१, शनिवार 
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

निसिचर   निकर  दले  रघुनंदन ।
नामु सकल कलि कलुष निकंदन ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २४ । ८)

रामजीने राक्षसोंके समूह-के-समूहका नाश कर दिया । राक्षस बहुत मरे, पर सब नहीं मरे, राजगद्दी होनेपर भी राक्षस रह गये । उनको मारनेके लिये शत्रुघ्नजीको भेजना पड़ा । कई आफत आयी; परंतु नाम महाराजके लिये कहा गया है कि नामु सकल कलि कलुष निकंदन’ इन्होंने कलियुगके सारे-के-सारे पापोंका नाश कर दिया । कोई पाप बाकी नहीं रहा, सबको नष्टकर दिया ।

अब बोलो ! स्वयं राम महाराज बड़े हैं कि नाम महाराज बड़े हैं ! ऐसे रामजीके चरणोंका शरण ले लो अपने तो ! जिसे दूसरे किसीकी आशा ही न हो, वह भगवान्‌का प्यारा हो जाता है ।

एक  बानि   करुनानिधान  की ।
सो प्रिय जाके गति न आन की ॥
(मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा १० । ८)

यदि कोई दूसरा सहारा रखता है तो उसको भगवान्‌की तरफसे पूरा बल नहीं मिलता । भगवान्‌पर पूरा विश्वास, भरोसा न करके अपनेको भगवान्‌से जितना अलग रख लेता है, भगवान्‌की उतनी चीज उसे नहीं मिलती । इसलिये दूसरेका सहारा छोड दें और उनके शरण हो जायँ ।

एक  भरोसो  एक  बल  एक आस बिस्वास ।
एक राम घनस्याम हित चातक तुलसीदास ॥

राम ! राम !! राम !!!
प्रवचन‒९

सबरी गीध सुसेवकनि  सुगति दीन्हि रधुनाथ ।
नाम उधारे अमित खल वेद बिदित गुन गाथ ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २४)

श्रीगोस्वामीजी महाराज सगुणसे भी बढ़कर रामनामकी महिमा बतलाते आ रहे हैं । यहाँ वही प्रकरण चल रहा है । श्रीरघुनाथजी महाराजने तो शबरी, गीध (जटायु) आदि जो सुसेवक थे और जो उनका चिन्तन करते थे, उनको ही मुक्ति दी; परंतु उनके नामने अगनित दुष्टोंका उद्धार कर दिया । नामके गुणोंकी कथा वेदोंमें प्रसिद्ध है ।
शबरीके बहुत दिनोंसे प्रतीक्षा हो रही थी कि भगवान् आवें, भगवान् आवें’ और वह गीध भी भगवान्‌के चरणोंकी रेखाका चिन्तन करता था । रेखाओंमें वज्र आदिके चिह्न होते हैं, वे रक्षा करनेवाले होते हैं । ऐसे भगवान्‌का चिन्तन करनेवाले दो सेवक रामचरितमानसमें मिलते हैं । उनको ही मुक्ति (गति) दी, पर नाम उधारे अमित खल’ नामने जिनका उद्धार किया, वे अमित हैं, कोई मित नहीं, उनकी कोई गणना नहीं है । बेद बिदित गुन नाथ’‒उनके गुणोंकी गाथाएँ वेदोंमें, शास्त्रोंमें, स्मृतियोंमें, पुराणोंमें, इतिहासोंमें प्रसिद्ध हैं । ऐसे अनेकोंका उद्धार कर दिया ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे