।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण द्वितीयावि.सं.२०७१शनिवार 
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

तीन प्रकारके सखा

राम सुकंठ   बिभीधन दोऊ ।
राखे सरन जान समु कोऊ ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २५ । १)

अब कहते हैं‒सुग्रीव और विभीषण दोनों भगवान्‌के मित्र रहे । श्रीरामजीने इन दोनोंको अपनी शरणमें रखा, यह सब कोई जानते हैं । भगवान्‌ने इनको सखा’ कहा है ।

खल  मंडली  बसहु  दिनु  राती ।
सखा धरम निबहइ केहि भाँती ॥
(मानस, सुन्दरकाण्ड, दोहा ४६ । ५)

विभीषणसे भगवान् गले मिलकर पूछते हैं कि दिन-रात दुष्टोंकी मण्डलीमें बसते हो, ऐसी दशामें, हे सखे ! तुम्हारा धर्म किस प्रकार निभता है ?’ ऐसे सुग्रीवको भी अपना सखा मानते हैं । जब विभीषण मिलने आया तो कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा’ भगवान्‌ने सुग्रीवसे कहा‒बोलो, सखा ! तुम्हारी क्या सम्मति है ? ऐसे दोनों ही सखा थे । इनको भगवान्‌ने अपने शरणमें रखा ।

ये दोनों ही भयभीत थे बेचारे ! सुग्रीव बालीसे डरता था और विभीषणको भी रावणने जोरसे धमकाया, लात भी मारी और कह दिया कि मेरे नगरमें रहता है और प्रीति तपस्वी (राम) से करता है । निकल जा यहाँसे ।’ ऐसे रावणने उसे निकाल दिया तो वह भगवान्‌के शरण आ गया । इन दोनोंको भगवान्‌ने अपने मित्र बना लिये । एक बात याद आ गयी‒रामायणमें भगवान्‌के तीन सखा हैं । (१) निषादराज गुह, (२) सुग्रीव और (३) विभीषण । इन तीनोंको सखा बनानेका तात्पर्य क्या है ? भगवान् कहते हैं‒‘मैं सबको सखा बनानेके लिये तैयार हूँ ।’ तीन तरहके भक्त होते हैं । (१) साधक भक्त होता है, (२) सिद्ध भक्त होता है और (३) विषयी भक्त होता है ।

सांसारिक विषयी मनुष्यको भी भगवान् सखा बना लेते हैं, साधक भक्तको भी सखा बना लेते हैं और सिद्ध भक्तको भी सखा बना लेते हैं । इनमें निषादराज गुह सिद्ध भक्त था, जैसे ज्ञानी भक्त होते हैं, परमात्माके प्यारे होते हैं, पूर्णताको प्राप्त‒ऐसे सिद्ध भक्त हैं निषादराज गुह । विभीषण साधक भक्त है, भगवत्प्राप्तिकी साधना करनेवाला है और सुग्रीव विषयी भक्त है । भगवान्‌की भक्ति करता है, पर करता है विपत्ति आनेपर, दुःख होनेपर और जब दुःख मिट जाता है तो फिर जै रामजीकी ! फिर कोई भक्ति नहीं । सुग्रीवके विषयमें भगवान् रामने लक्ष्मणजीसे कहा‒

सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी ।
पावा राज  कोस  पुर नारी ॥
(मानस, किष्किन्धाकाण्ड, दोहा १८ । ४)

सुग्रीव भी मेरी सुध भूल गया; क्योंकि उसको राज्य मिल गया, मकान मिल गया, नगर मिल गया, खजाना मिल गया, स्त्री मिल गयी । अब भजन कौन करे ? जब विपत्ति थी, डर था, तब भजन करता था । अब भय मिट गया, मौजसे राज्य करता है, इसलिये मेरेको भी भूल गया ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे