हनुमान्जीने सुग्रीवको रामजीसे मिलनेके लिये कहा‒‘तुम कर क्या रहे हो !’
रामजीने यहाँ प्रवर्षण गिरिपर चातुर्मास (निवास) किया है और
तुमने भगवान्की बात भुला दी । इतने दिन हो गये,
कभी मिलनेतक नहीं गये और सीताजीकी खोज भी तुमने नहीं की । ऐसी
बात हनुमान्जीने कही । तब उसे कुछ चेत हुआ;
परंतु फिर महाराज ! लक्ष्मणजीके सामने रामजीने जोरसे कहा‒‘सुग्रीव
भी मुझे भूल गया है, जिस बाणसे बालिको मारा है,
कल उसी बाणसे उसको भी मारना है ।’
यह सुनकर लक्ष्मणजी बोले‒‘महाराज ! वह तकलीफ आपको नहीं देखनी
पड़ेगी । मैं अभी जाता हूँ और सब काम कर दूँगा ।’
तब भगवान्ने समझा कि कहीं लक्ष्मण उसे मार न दे । इसलिये कह
दिया‒‘ना, ना, भाई ।’
भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव ।
(मानस,
किष्किन्धाकाण्ड, दोहा १८)
‘देखो, सुग्रीव हमारा सखा है,
मित्र है । भय दिखलाकर ले आना ।’
भय दिखानेका तात्पर्य क्या है ?
ये विषयी भक्त होते हैं,
इनमें जब कोई आफत आती है,
भय होता है, तब भगवान्का भजन करते हैं । भय मिट जाता है तो फिर वैसे ही
। इसलिये कहा‒‘भय दिखाकर ले आना, मारना नहीं ।’ भय दिखानेके लिये भगवान्को यह कहना पड़ा । लक्ष्मणजी जब वहाँ
गये तो सुग्रीव भयभीत हो गया । उसने पहले ताराको भेजा कि लक्ष्मणजी आ रहे हैं,
इनको राजी करो किसी तरह ही । स्त्रियों हैं,
बालक हैं, इनको देखकर बड़ोंको दया आ जाती है,
एक कृपा आ जाती है । इसलिये ताराको,
हनुमान्जीको और अंगदको भेजा;
क्योंकि वह डर गया । जब लक्ष्मणजी पधारे तो उनको अपनी खाटपर
बैठाया । सुग्रीव विषयी था न ! तो वहीं रहता था । बैठकमें नहीं,
माचे (चारपाई) पर बैठा रहता । इसलिये लक्ष्मणजीको भी वहीं खाटपर
बैठाया । इस तरह उनका आदर किया । ये सब विषयीके लक्षण हैं । रामजीसे जाकर मिला तो क्या
कहा ? रामजीसे कहा‒‘महाराज !
नारि नयन सर जाहि न
लागा ।
घोर क्रोध तम निसि जो जागा ॥
लोभ पाँस जेहि गर न
बँधाया ।
सो नर तुम्ह समान रधुराया ॥
यह गुन साधन तें
नहिं होई ।
तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ
कोई ॥
(मानस, किष्किन्धाकाण्ड, दोहा २१ । ४‒६)
गीतामें जैसे काम, क्रोध और लोभ‒ये तीन नरकके दरवाजे बताये हैं । उसी तरह सुग्रीवने
कहा‒‘नारि नयन सर जाहि न लागा’
स्त्रीका नयन बाण जिसको नहीं लगा अर्थात् जो कामके वशमें नहीं
हुआ और ‘घोर क्रोध तम निसि जो जागा ।’‒जो घोर क्रोध-रूपी रात्रिमें जग गया,
मानो जिसको क्रोध नहीं हुआ और ‘लोभ
पासँ जेहि गर न बँधाया ।’ लोभकी फाँसी जिसके गलेमें नहीं लगी है । ‘सो नर
तुम्ह समान रघुराया ॥’ वह तो आपके
समान ही है, जो इन दोषोंसे दूर है । ऐसे भगवान्के प्यारे भक्त होते हैं
।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें
नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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