।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.२०७१, सोमवार 
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

हनुमान्‌जीने सुग्रीवको रामजीसे मिलनेके लिये कहा‒तुम कर क्या रहे हो !’ रामजीने यहाँ प्रवर्षण गिरिपर चातुर्मास (निवास) किया है और तुमने भगवान्‌की बात भुला दी । इतने दिन हो गये, कभी मिलनेतक नहीं गये और सीताजीकी खोज भी तुमने नहीं की । ऐसी बात हनुमान्‌जीने कही । तब उसे कुछ चेत हुआ; परंतु फिर महाराज ! लक्ष्मणजीके सामने रामजीने जोरसे कहा‒‘सुग्रीव भी मुझे भूल गया है, जिस बाणसे बालिको मारा है, कल उसी बाणसे उसको भी मारना है ।’ यह सुनकर लक्ष्मणजी बोले‒‘महाराज ! वह तकलीफ आपको नहीं देखनी पड़ेगी । मैं अभी जाता हूँ और सब काम कर दूँगा ।’ तब भगवान्‌ने समझा कि कहीं लक्ष्मण उसे मार न दे । इसलिये कह दिया‒‘ना, ना, भाई ।’

भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव ।
(मानस, किष्किन्धाकाण्ड, दोहा १८)

देखो, सुग्रीव हमारा सखा है, मित्र है । भय दिखलाकर ले आना ।’ भय दिखानेका तात्पर्य क्या है ? ये विषयी भक्त होते हैं, इनमें जब कोई आफत आती है, भय होता है, तब भगवान्‌का भजन करते हैं । भय मिट जाता है तो फिर वैसे ही । इसलिये कहा‒‘भय दिखाकर ले आना, मारना नहीं ।’ भय दिखानेके लिये भगवान्‌को यह कहना पड़ा । लक्ष्मणजी जब वहाँ गये तो सुग्रीव भयभीत हो गया । उसने पहले ताराको भेजा कि लक्ष्मणजी आ रहे हैं, इनको राजी करो किसी तरह ही । स्त्रियों हैं, बालक हैं, इनको देखकर बड़ोंको दया आ जाती है, एक कृपा आ जाती है । इसलिये ताराको, हनुमान्‌जीको और अंगदको भेजा; क्योंकि वह डर गया । जब लक्ष्मणजी पधारे तो उनको अपनी खाटपर बैठाया । सुग्रीव विषयी था न ! तो वहीं रहता था । बैठकमें नहीं, माचे (चारपाई) पर बैठा रहता । इसलिये लक्ष्मणजीको भी वहीं खाटपर बैठाया । इस तरह उनका आदर किया । ये सब विषयीके लक्षण हैं । रामजीसे जाकर मिला तो क्या कहा ? रामजीसे कहा‒‘महाराज !

नारि नयन सर  जाहि न लागा ।
घोर क्रोध तम निसि जो जागा ॥
लोभ पाँस  जेहि गर न बँधाया ।
सो नर तुम्ह  समान  रधुराया ॥
यह  गुन  साधन  तें  नहिं होई ।
तुम्हरी  कृपाँ  पाव  कोइ कोई ॥
(मानस, किष्किन्धाकाण्ड, दोहा २१ । ४‒६)

गीतामें जैसे काम, क्रोध और लोभ‒ये तीन नरकके दरवाजे बताये हैं । उसी तरह सुग्रीवने कहा‒नारि नयन सर जाहि न लागा’ स्त्रीका नयन बाण जिसको नहीं लगा अर्थात् जो कामके वशमें नहीं हुआ और घोर क्रोध तम निसि जो जागा ।’‒जो घोर क्रोध-रूपी रात्रिमें जग गया, मानो जिसको क्रोध नहीं हुआ और लोभ पासँ जेहि गर न बँधाया ।’ लोभकी फाँसी जिसके गलेमें नहीं लगी है । सो नर तुम्ह समान रघुराया ॥’ वह तो आपके समान ही है, जो इन दोषोंसे दूर है । ऐसे भगवान्‌के प्यारे भक्त होते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे