।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ अमावस्या, वि.सं.२०७२, सोमवार
सोमवती अमावस्या
कामनाओंके त्यागसे शान्ति



(गत ब्लॉगसे आगेका)
भीतर भोग और संग्रहकी जो प्रियता है, जिससे वे अच्छे लगते हैं और छोड़ना नहीं चाहते, उसीका त्याग होना चाहिये । त्याग नाम इसीका है । बाहरका त्याग भी अच्छा है, सहायक है । पर वास्तवमें त्याग प्रियताका है । वह प्रियता ही जन्म-मरण देनेवाली और महान् नरकोंमें डालनेवाली चीज है ।

भगवान्‌ने चार चीजोंका त्याग बतलाया‒जो प्राप्त नहीं है, उसकी कामना, जो प्राप्त है उसकी ममता, निर्वाहकी स्पृहा और मैं ऐसा हूँ‒यह अहंता, जिसके कारण अपनेमें दूसरोंकी अपेक्षा विशेषता दीखती है ।

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥
                                                 (गीता २ । ७१)

जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओंको त्यागकर ममतारहित, अहंकाररहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही शान्तिको प्राप्त होता है ।

कामना, स्पृहा, ममता और अहंकार‒इन चारोंका सर्वथा त्याग हो जाय तो अभी शान्ति मिल जाय । ये चारों महान् अशान्ति पैदा करनेवाली चीजें हैं । इनको तो त्यागना नहीं चाहते और शान्ति पाना चाहते हैं, ऐसा कभी होगा नहीं । कामनाके त्यागसे ही कर्मयोग सिद्ध होगा । कर्मयोगके द्वारा सिद्ध हुए पुरुषका नाम स्थितप्रज्ञ है । उसके लक्षण बतलाते समय आरम्भ और अन्तमें कामनाओंके त्यागकी बात कही । कामना, स्पृहा, ममता और अहंकार‒इनका त्याग होनेपर फिर एक ब्रह्मकी प्राप्ति हो जायगी‒‘ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति’ (गीता २ । ७२)

अन्तमें न जाने कहीं वासना रह जाय ? और जगह न रहे, पर शरीरमें तो रह सकती है । इसलिये मनुष्य जितना सावधान रहे, उतना अच्छा है । शरीर तो मूल चीज है इसलिये इसमें अहंता-ममता नहीं रहनी चाहिये । इसमें अहंता-ममता होनेसे ही इसके निर्वाहकी इच्छा होती है । पर इच्छासे तो शरीर रहेगा नहीं । जीनेकी इच्छा करते-करते ही लोग मरते हैं । इच्छा करनेमें फायदा तो कोई-सा नहीं है और नुकसान कोई-सा भी बाकी नहीं है । मैंने खूब सोचा है, विचार किया है ।

प्रश्न‒कामना छोड़नेके लिये क्या करें ?

उत्तर‒अगर आपके मनमें करनेकी है, तो यों करो‒नाम-जप करो और भीतरसे प्रार्थना करो कि हे नाथ ! हे प्रभु ! मेरेसे कामना, आसक्ति छूटती नहीं ! इस प्रकार हरदम भीतरसे पुकारते ही रहो लगनसे । वे प्रभु परमदयालु हैं, वे कृपा करेंगे । यह उपाय आप काममें लाकर देखें, उपाय तो कई हैं, पर जोरदार लगन होनी चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे