।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया, वि.सं.२०७२, बुधवार
गायकी महत्ता और आवश्यकता



(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒भैंसे और ऊँटके द्वारा भी खेती हो सकती है, फिर गाय-बैलकी क्या जरूरत ?

उत्तरखेतीमें जितनी प्रधानता बैलोंकी है, उतनी प्रधानता अन्य किसीकी भी नहीं है । भैंसेके द्वारा भी खेती की जाती है, पर खेतीमें जितना काम बैल कर सकता है, उतना भैंसा नहीं कर सकता । भैंसा बलवान् तो होता है, पर वह धूप सहन नहीं कर सकता । धूपमें चलनेसे वह जीभ निकाल देता है, जबकि बैल धूपमें भी चलता रहता है । कारण कि भैंसेमें सात्त्विक बल नहीं होता, जबकि बैलमें सात्त्विक बल होता है । बैलोंकी अपेक्षा भैंसे कम भी होते हैं । ऊँटसे भी खेती की जाती है, पर ऊँट भैंसोंसे भी कम होते हैं और बहुत महँगे होते हैं । खेती करनेवाला हरेक आदमी ऊँट नहीं खरीद सकता । आजकल बड़ी संख्यामें अच्छे-अच्छे जवान बैल मारे जानेके कारण बैल भी महँगे हो गये हैं, तो भी वे ऊँट‒जितने महँगे नहीं हैं । यदि घरोंमें गायें रखी जायँ तो बैल घरोंमें ही पैदा हो जाते हैं, खरीदने नहीं पड़ते । विदेशी गायोंके जो बैल होते हैं, वे खेतीमें काम नहीं आ सकते; क्योंकि उनके कंधे न होनेसे उनपर जुआ नहीं रखा जा सकता । वे गरमी भी सहन नहीं कर सकते । वास्तवमें जिस देशका पशु है, वह उसी देशमें काम आ सकता है । अतः अपने देशकी गायोंका पालन करना चाहिये, उनकी विशेषरूपसे रक्षा करनी चाहिये ।

बैलोंसे जितनी बढ़िया खेती होती है, उतनी ट्रैक्टरोंसे नहीं होती । देखनेमें तो ट्रैक्टरोंसे और रासायनिक खादसे खेती जल्दी हो जाती है, पर जल्दी होनेपर भी वह बढ़िया नहीं होती । बैलोंसे की गयी खेतीका अनाज बड़ा पवित्र होता है । गोबर-गोमूत्रकी खादसे जो अन्न पैदा होता है, वह बड़ा पवित्र, शुद्ध, निर्मल होता है ।

खेतका और गायका घनिष्ठ सम्बन्ध है । खेतमें पैदा होनेवाले घास आदिसे गायकी पुष्टि होती है और गायके गोबर-मूत्रसे खेतकी पुष्टि होती है । विदेशी खाद डालनेसे कुछ ही वर्षोंमें जमीन खराब हो जाती है अर्थात् उसकी उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है । परंतु गोबर-गोमूत्रसे जमीनकी उपजाऊ शक्ति ज्यों-की-त्यों बनी रहती है । इसलिये पुराने जमानेमें खेतोंमें खाद डालनेकी प्रथा ही नहीं थी और सौ-सौ वर्षोंतक खेतोंमें अन्न पैदा होता रहता था । विदेशोंमें रासायनिक खादसे बहुत-से खेत खराब हो गये हैं, जिनको उपजाऊ बनानेके लिये वे गोबर काममें ले रहे हैं ।

प्रश्न‒गायके दूधकी क्या महिमा है ?

उत्तरगायका दूध जितना सात्त्विक होता है, उतना सात्त्विक दूध किसीका भी नहीं होता । हमारे देशकी गायें सौम्य और सात्त्विक होती हैं, इसलिये उनका दूध भी सात्त्विक होता है । जिसको पीनेसे बुद्धि तीक्षण होती है और स्वभाव सौम्य, शान्त होता है । विदेशी गायोंका दूध तो ज्यादा होता है, पर उनके दूधमें उतनी सात्त्विकता नहीं होती तथा उनमें गुस्सा भी ज्यादा होता है । अतः उनका दूध पीनेसे मनुष्यका स्वभाव भी क्रूर होता है । विदेशी गायोंके दूधमें घी कम होता है और वे खाती भी ज्यादा हैं ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)
        ‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे