।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७२, गुरुवार
गायकी महत्ता और आवश्यकता



(गत ब्लॉगसे आगेका)

भैंसके दूधमें घी ज्यादा होनेसे वह शरीरको मोटा तो करता है, पर वह दूध सात्त्विक नहीं होता । गाड़ी चलानेवाले जानते ही हैं कि गाड़ीका हार्न सुनते ही गायें सड़कके किनारे हो जाती हैं, जबकि भैंस सड़कमें ही खड़ी रहती है । इसलिये भैंसके दूधसे बुद्धि स्थूल होती है । सैनिकोंके घोड़ोंको गायका दूध पिलाया जाता है, जिससे वे घोड़े बहुत तेज होते हैं । एक बार सैनिकोंने परीक्षाके लिये कुछ घोड़ोंको भैंसका दूध पिलाया, जिससे घोड़े खूब मोटे हो गये । परंतु जब नदी पार करनेका काम पड़ा, तब वे घोड़े पानीमें बैठ गये ! भैंस पानीमें बैठा करती है, इसलिये वही स्वभाव घोड़ोंमें भी आ गया ।

ऊँटनीका दूध भी निकलता है, पर उस दूधका दही, मक्खन होता ही नहीं । उसका दूध तामसी होनेसे दुर्गतिमें ले जानेवाला होता है । स्मृतियोंमें ऊँट, कुत्ते, गधे आदिको अस्पृश्य बताया गया है । बकरीका दूध नीरोग करनेवाला एवं पचनेमें हलका होता है, पर वह गायके दूधकी तरह बुद्धिवर्धक और सात्त्विक बात समझनेके लिये बल देनेवाला नहीं होता ।

गायके दूधसे निकला घी ‘अमृत’ कहलाता है । स्वर्गकी अप्सरा उर्वशी राजा पुरूरवाके पास गयी तो उसने अमृतकी जगह गायका घी पीना ही स्वीकार किया‒‘घृतं मे वीर भक्ष्यं स्यात्’ (श्रीमद्भा ९ । १४ । २२) ।

प्रश्न‒गायके गोबर और गोमूत्रकी क्या महिमा है ?

उत्तरगायके गोबरमें लक्ष्मीजीका और गोमूत्रमें गंगाजीका निवास माना गया है । इसलिये गायके गोबर-गोमूत्र भी बड़े पवित्र हैं । गोबरसे लिपे हुए घरोंमें प्लेग, हैजा आदि भयंकर बीमारियों नहीं होतीं । इसके सिवाय युद्धके समय गोबरसे लिपे हुए मकानोंपर बमका उतना असर नहीं होता, जितना सीमेंट आदिसे बने हुए मकानोंपर होता है ।

गोबरमें जहर खींचनेकी विशेष शक्ति होती है । काशीमें कोई आदमी साँप काटनेसे मर गया । लोग उसकी दाह-क्रिया करनेके लिये उसको गंगाके किनारे ले गये । वहाँ एक साधु रहता था । उसने पूछा कि इस आदमीको क्या हुआ ? लोगोंने कहा कि यह साँप काटनेसे मरा है । साधुने कहा कि यह मरा नहीं है, तुमलोग गायका गोबर ले आओ । गोबर लाया गया । साधुने जमीनपर गोबर डालकर उसपर उस आदमीको लिटा दिया और उसकी नासिकाको छोड़कर पूरे शरीरपर गोबर थोप दिया । आँखें मीचकर, उनपर कपड़ा रखकर उसके ऊपर भी गोबर रख दिया । आधे घंटेके बाद दूसरी बार उसपर गोबर थोप दिया । कुछ घंटोंमें उस आदमीके श्वास चलने लगे और वह जी उठा ! अगर किसी अंगमें बिच्छू काट जाय तो जहाँतक विष चढ़ा हुआ है, वहाँतक गोबर लगा दिया जाय तो विष उतर जाता है । हमने सुना है कि शरीरमें कोई भी रोग हो, जमीनमें गहरा गड्ढा खोदकर उसमें रोगीको खड़ा कर दे और उसके गलेतक वह गड्ढा गोबरसे भर दे । लगभग आधे घंटेतक अथवा जितनी देरतक रोगी सुगमतापूर्वक सहन कर सके, उतनी देरतक वह गड्ढेमें खड़ा रहे । जबतक रोग शान्त न हो जाय, तबतक प्रतिदिन यह प्रयोग करता रहे ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)
        ‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे