।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
शुद्ध आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७२, रविवार
भगवत्-तत्त्व


(गत ब्लॉगसे आगेका)
वे वेद-शास्त्रानुकूल आचरणके द्वारा धर्मका महत्व दिखलाकर, अपनी अलौकिक अप्रतिम दिव्य प्रभावशालिनी वाणीके द्वारा धर्मके तत्त्वका उपदेश देकर, सम्पूर्ण मनुष्योंके अन्तःकरणमें वेद, शास्त्र, धर्म, परलोक, महात्मा और अपनेपर श्रद्धा उत्पन्न कराकर, सदाचार-सद्‌गुण और सद्भावोंसे विश्वास, प्रेम उत्पन्न कराकर तथा लोगोंको उन्हें दृढ़तासे धारण कराकर संसार-सागरसे उनका उद्धार करनेके लिये राम, कृष्ण, नृसिंह आदि स्वरूपोंसे प्रकट होते हैं (गीता ४ । ८) ।

भगवान्‌का अवतार-विग्रह दिव्य, अलौकिक और अद्भुत होता है । वे परमात्मा मायाके वशमें होकर जन्म नहीं लेते; किंतु अपनी विद्यामयी प्रकृतिको अपने वशीभूत करके योगमायासे प्रकट होते हैं । यह भगवान्‌का प्रकट होना जीवोंके जन्मकी अपेक्षा बहुत ही विलक्षण और दिव्य है । जगत्‌के सभी चराचर जीव अपने गुण, कर्म, स्वभावके वशमें हुए प्रारब्धानुसार सुख-दुःखादि भोग भोगनेके लिये जन्म लेते हैं; परंतु परमात्मा किसीके भी वशमें न होकर अपनी इच्छासे केवल जीवोंपर अहैतुकी कृपा करके ही अवतरित होते हैं । इस प्रकार ईश्वरका प्रकट होना उनकी आनन्दमयी लीला है और जीवोंका जन्म लेना दुःखमय है । भगवान् प्रकट होनेमें सर्वथा स्वतन्त्र हैं और जीव जन्म लेनेमें सर्वथा परतन्त्र हैं । ईश्वरके अवतरित होनेमें केवल उनकी अहैतुकी कृपा ही कारण है और जीवोंके जन्ममें हेतु उनके शुभाशुभ कर्म हैं ।

विग्रह-तत्त्व

वे सर्वत्र परिपूर्ण सत्स्वरूप परमात्मा ही दिव्य विग्रहरूपमें प्रकट होते हैं । भगवान्‌का वह दिव्य विग्रह अलौकिक, अद्भुत और विलक्षण है (गीता ४ । ९) और वे परमात्मा अपनी पूर्ण शक्तिसे ही प्रकट होते हैं । उनका साकार विग्रह एक देशमें प्रकट दीखनेपर भी वे वास्तवमें न तो दूसरे देशसे हट जाते हैं और न एक देशमें सीमाबद्ध ही हो जाते हैं । वे जीवकी तरह शरीरधारी नहीं होते । उनके विग्रहमें देह-देहीभाव नहीं है, उनका वह विग्रह दिव्य चिन्मयस्वरूप ही है, जिसका यथार्थ अनुभव दिव्य नेत्रवाले भक्तोंको होता है, दूसरोंको नहीं ।

चिदानंदमय    देह     तुम्हारी ।
बिगत बिकार जान अधिकारी ॥

भगवान्‌ने भी कहा है‒

नाहं  प्रकाशः  सर्वस्य     योगमायासमावृतः ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥
                                                    (गीता ७ । २५)

अपनी योगमायासे छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिये यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझे जन्मरहित अविनाशी परमात्मा नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने-मरनेवाला समझता है ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे