।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
शुद्ध आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७२, बुधवार

हमारा असली घर



श्रीमद्भगवद्गीतामें भगवान् कहते हैं

‘ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।’ (गीता १५ । ७) ‘इस संसारमें जीव बना हुआ आत्मा (स्वयं) मेरा ही सनातन अंश है ।’

भगवान्के ही अंश होनेसे हम सब-के-सब भगवान्‌के ही घरके हैं । हमारा घर संसारमें नहीं है, इसीलिये हम चौरासी लाख योनियोंमें जाते हैं, स्वर्ग-नरकादि लोकोंमें जाते हैं, कहीं ठहरते नहीं । अगर यहाँ हमारा घर होता तो हम यहीं रहते, कहीं जाते नहीं । परन्तु परमात्माकी प्राप्ति होनेपर फिर जन्म-मरण नहीं होता; क्योंकि हम परमात्माके ही घरके हैं । इसलिये परमात्माकी प्राप्ति तो हमारे घरकी बात है, पर संसारकी प्राप्ति हमारे घरकी बात नहीं है । जबतक असली घरकी प्राप्ति नहीं होगी, तबतक अनेक घरोंमें भटकना पड़ेगा । लाखों-करोड़ों वर्ष बीत जायँ तो भी भटकना बन्द नहीं होगा । परन्तु परमात्माके घर पहुँचते ही हमारा भटकना सदाके लिये बन्द हो जायगा ।

हम परमात्माके हैं और परमात्मा हमारे हैं । हम संसारके नहीं हैं और संसार हमारा नहीं है । हमारा सम्बन्ध परमात्माके साथ है । संसारके साथ हमारा सम्बन्ध है ही नहीं, होगा ही नहीं, हो सकता ही नहीं । इसीलिये हम संसारमें कभी एक योनिमें नहीं रहते । इतना ही नहीं, एक योनिमें भी हम पहले बालक होते हैं, फिर जवान होते हैं, फिर बूढ़े होते हैं । एक क्षण भी स्थिर नहीं रहते । प्रत्येक देश, काल, वस्तु व्यक्ति, परिस्थिति, घटना, अवस्था आदिमें प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है । कारण कि संसारमें कुछ भी स्थायी नहीं है । स्थायी रहनेवाली वस्तु भगवान्के घरकी ही है ।

संसार पराया घर है । हमें परायी जगह छोड़नी है और अपनी जगह पहुँचना है । साधकोंके हृदयमें प्रायः यह बात जँची रहती है कि हम संसारके हैं और परमात्माको प्राप्त करना है । वास्तवमें हम परमात्माके ही हैं और परमात्माकी प्राप्ति स्वतः है । अगर पहलेसे ही यह धारणा हो जाय कि हम संसारके नहीं हैं, हम तो परमात्माके हैं (जो वास्तवमें है) तो परमात्मप्राप्ति बहुत सुगम हो जायगी ।

संसारका सम्बन्ध अनित्य है, पर भगवान्का सम्बन्ध नित्य है । लाखों-करोड़ों वर्ष अथवा अनन्त वर्ष बीत जायँ तो भी भगवान्के साथ हमारा सम्बन्ध ज्यों-का-त्यों रहेगा । परन्तु संसारका सम्बन्ध छूटता ही रहेगा । यह क्षणमात्र भी स्थिर नहीं है । जीव संसारको अपना मानकर कभी वृक्ष बनता है, कभी पशु बनता है, कभी पक्षी बनता है, कभी भूत-प्रेत बनता है, कभी पिशाच बनता है, कभी देवता बनता है, कभी पितर बनता है, क्योंकि जो अपने घरका नहीं होगा, वह भटकनेके सिवाय और क्या करेगा ?

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे