(गत ब्लॉगसे आगेका)
मैं आपसे एक प्रश्न करता हूँ‒पहले बेटा पैदा होता है कि बाप ?
श्रोता‒बाप !
स्वामीजी‒नहीं, पहले बेटा पैदा होता है, पीछे बाप पैदा होता
है । बेटा पैदा हुए बिना उसका ‘बाप’ नाम होता ही नहीं । जिससे बेटा पैदा हो जाय,
वह बाप हो गया और जिससे आपको ज्ञान हो जाय, वह गुरु हो गया, भले ही आप
उसको गुरु मत बनाओ । जिससे आपको गुर मिल गया, सिद्धान्त मिल गया
और जिसकी शिक्षासे आपकी उन्नति हो गयी, वह आपका गुरु हो गया,
चाहे उसको पता हो या न हो । वह बनावटी गुरु नहीं है, असली गुरु है । बनावटी गुरुसे कभी कल्याण नहीं होता । कालनेमिने हनुमान्जीसे कहा कि ‘मैं गुरु हूँ,
स्नान करके आओ, मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा ।’ हनुमान्जी स्नान करनेके लिये गये । वहाँ मकरीने कहा कि ‘महाराज ! इसको सन्त मत मानना, यह तो राक्षस है ।’ हनुमान्जीने आकर कहा कि ‘पहले गुरु-दक्षिणा ( भेंट) ले लो, पीछे मेरेको मन्त्र
देना’ और उसको पूँछमें लपेटकर ऐसा पछाड़ा कि वह प्राणमुक्त हो गया ! कपटी, बनावटी
गुरुकी ऐसी पूजा होती है । जैसा देव, वैसी पूजा ।
थोड़ा विचार करें, जिसके मनमें चेला बनानेकी इच्छा है,
वह गुरु कैसे हुआ ! वह तो चेलादास है । जिसको चेलेकी
गरज है, वह चेलेका गुलाम हुआ । जिसको रुपयोंकी गरज है, वह रुपयोंका गुलाम हुआ । अगर रुपये देनेसे
कोई गुरु बनता है, तो वह हुआ रुपयोंका दास और वे रुपये हमारे
पास हैं, तो हम हुए उसके दादागुरु ! अब
वह हमारा कल्याण कैसे करेगा ? परंतु लोग सोचते ही नहीं और कह
देते हैं कि अरे ! रुपये इनके भेंट कर दो और इनके चेले बन जाओ,
ये हमारा कल्याण कर देंगे । माताओंसे कहते हैं कि ‘तुम ऐसे-ऐसे कर दो, नहीं तो चिड़िया बनाकर उड़ा देंगे तुम्हारेको
!’ जब महाराज ! चिड़िया बनाकर उड़ा दोगे,
तभी हम आपको मानेंगे, नहीं तो आपको कुछ न देंगे
। हमारा तो फायदा ही है, चलना-फिरना नहीं
पड़ेगा, उड़कर चले जायेंगे ! वे आशीर्वाद
देते हैं‒‘तेरे दूध-पूतकी खैर‒तेरा दूध (जाति) भी ठीक रहे, तेरा पूत भी जीता रहे, तो महाराज ! आशीर्वाद आप अपने पास ही रखो । वे कहते हैं कि इतनी भेंट लाओ, इतना रुपया लाओ तो तुम्हारा कल्याण कर देंगे, ऐसी विद्या
बता देंगे, जिससे लोहेका सोना बन जाय । बाबाजी ! ऐसी विद्या यदि तुम्हारे पास है तो हमारेसे रुपया क्यों माँगते हो ?
रुपयेकी चाहना क्यों रखते हो ? वे कहते हैं कि
हमारे पास रुपये कम हैं, इसलिये माँगते हैं । महाराज !
अगर हमारे पास रुपये ज्यादा हैं तो हम तुम्हारेसे बड़े हुए फिर तुम्हारे
गुलाम हम क्यों बनेंगे ? जो रुपयोंसे खरीदे जायँ, वे गुरु नहीं
होते ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘सच्चा गुरु कौन ?’ पुस्तकसे
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